आतंकवादी देश बनने की ओर पाकिस्तान -
-अमेरिका के दो बड़े राजनीतिक दलों के दो प्रभावशाली सांसदों ने पाकिस्तान को आतंकवाद को प्रायोजित करने वाला देश घोषित करने के लिए प्रतिनिधि सभा में एक विधेयक पेश किया है। कांग्रेस के सदस्य और आतंकवाद पर सदन की उपसमिति के अध्यक्ष टेड पो ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम पाकिस्तान की धोखाधड़ी के लिए उसे धन देना बंद कर दें और उसे वह घोषित करें जो वह है आतंकवाद को प्रायोजित करने वाला देश। 'पाकिस्तान स्टेट स्पॉन्सर ऑफ टेरेरिज्म डेजिगनेशन एक्टÓ को रिपब्लिकन पार्टी के पो और डेमोक्रेटिक पार्टी से कांग्रेस के सदस्य डाना रोहराबाचर ने पेश किया हैं। रोहराबाचर आतंकवाद पर कांग्रेस की प्रभावशाली समिति के रैंकिंग सदस्य हैं।
आर.पी. सिंह-
भारत पर समय-बेसमय हमले पर हमले करने वाले पाकिस्तान की कारस्तानियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। उधर घाटी में कुुछ अलगाववादी नेताओं को ढो रही सरकार ने जैसे ही इनसे पल्ला झाड़ा कि घाटी में पाक पोषित आतंकवादियों ने घृणित घटना को अंजाम दे डाला। अमेरिका के दो बड़े राजनीतिक दलों के दो प्रभावशाली सांसदों ने पाकिस्तान को आतंकवाद को प्रायोजित करने वाला देश घोषित करने के लिए प्रतिनिधि सभा में एक विधेयक पेश किया है। कांग्रेस के सदस्य और आतंकवाद पर सदन की उपसमिति के अध्यक्ष टेड पो ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम पाकिस्तान की धोखाधड़ी के लिए उसे धन देना बंद कर दें और उसे वह घोषित करें जो वह है आतंकवाद को प्रायोजित करने वाला देश। 'पाकिस्तान स्टेट स्पॉन्सर ऑफ टेरेरिज्म डेजिगनेशन एक्टÓ को रिपब्लिकन पार्टी के पो और डेमोक्रेटिक पार्टी से कांग्रेस के सदस्य डाना रोहराबाचर ने पेश किया हैं। रोहराबाचर आतंकवाद पर कांग्रेस की प्रभावशाली समिति के रैंकिंग सदस्य हैं।
उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान विश्वास न करने योग्य सहयोगी ही नहीं है, बल्कि उसने अमेरिका के शत्रुओं की वर्षों से मदद भी की है और उन्हें बढ़ावा भी दिया है।Ó उन्होंने कहा, 'ओसामा बिन लादेन को शरण देने से लेकर हक्कानी नेटवर्क के साथ उसके निकट संबंध तक, इस बात से पर्याप्त सबूत हैं कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ जंग में किस ओर है..और वह अमेरिका की ओर नहीं है।Ó
26 से अधिक वर्षों से पाक अधिकृत क्षेत्रों में चल रहे प्रशिक्षण शिविरों में प्रशिक्षण प्राप्त आतंकवादियों ने लगातार जम्मू-कश्मीर में हिंसा का तांडव जारी रखा हुआ है। 15 अगस्त को श्रीनगर के नौहट्टा में सी.आर.पी.एफ. के एक कमांडेंट शहीद हुए, 17 अगस्त को आतंकियों ने एक सैन्य काफिले पर हमला करके 8 लोगों को मार डाला और 11 सितम्बर को पुंछ के मिनी सचिवालय में सेना व पुलिस की लश्कर-ए-तोयबा के आतंकवादियों के साथ 3 दिन चली मुठभेड़ में एक नागरिक और 5 जवानों की मौत हुई।
पहले से ही जारी हाई अलर्ट के बावजूद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसी हफ्ते एक अन्य अलर्ट में आतंकवादियों द्वारा सैन्य ठिकानों एवं हवाई अड्डों को निशाना बनाने तथा उरी और श्रीनगर में बड़े हमले की आशंका जताई थी।
एक अन्य अलर्ट में 150-200 आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ की तैयारी के बारे में भी चेतावनी दी गई थी। यही नहीं, इसी महीने 4 सितम्बर को हिजबुल मुजाहिदीन के सरगना सलाहुद्दीन ने ''कश्मीर को भारतीय सैनिकों की कब्रगाह बना देनेÓÓ की धमकी भी दी थी।
इन सब चेतावनियों के बावजूद जम्मू-कश्मीर के बारामूला शहर के उरी सेक्टर में नियंत्रण रेखा के निकट सेना के 12 ब्रिगेड मुख्यालय पर 18 सितम्बर की सुबह आतंकवादियों के हमले में सेना के 18 जवान शहीद हो गए। जम्मू-कश्मीर में यह गत 20 वर्षों में सबसे बड़ा आतंकवादी हमला है।
उरी में अत्यंत महत्वपूर्ण भारतीय सेना के इस ठिकाने पर इस हमले को सुरक्षा बलों की बहुत बड़ी चूक माना जा रहा है क्योंकि इससे पहले 2014 में भी आतंकवादियों द्वारा इसे निशाना बनाया जा चुका है।
उरी में सेना की 12वीं ब्रिगेड का मुख्यालय और अत्याधुनिक हथियारों का बड़ा डिपो है और यहीं से सेना की 17 बटालियनों को हथियारों तथा रसद की सप्लाई की जाती है। इससे पहले सांबा और कठुआ में भी हथियारों के डिपुओं पर हमले हो चुके हैं।
यह सैन्य ठिकाना 1989 में घाटी में हिंसा का दौर शुरू होने के समय से ही घुसपैठ रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है। यहां 12000 से 13000 तक सैनिक रहते हैं लेकिन यह इस दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है कि यहां तीन ओर से पहुंचा जा सकता है तथा इसमें घुसैपठ का एक स्थान तो 'पाक अधिकृत कश्मीरÓ से मात्र 6 किलोमीटर ही दूर है।
हालांकि यहां चौबीसों घंटे सशस्त्र पहरा रहता है और किसी भी सैन्य ठिकाने पर होने वाले सैनिकों की ड्यूटी की अदला-बदली को गुप्त रखा जाता है परंतु आशंका व्यक्त की जा रही है कि घुसपैठियों को यहां सैनिकों की नियमित रूप से की जाने वाली अदला-बदली की जानकारी हो गई थी और अदला-बदली के दौरान सुरक्षा विहीन रहने वाली 8 मिनट की अवधि के दौरान ही घुसपैठियों ने इस हमले को अंजाम दिया। इसका मतलब है कि हमारी सेनाओं की गतिविधियों की पल-पल की खबर हमारे दुश्मनों के पास मौजूद थी।
1999 से लेकर अब तक जम्मू-कश्मीर में हमारे सैनिक ठिकानों पर हमले आमतौर पर सुबह को ही किए गए हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ है लेकिन हर हमले के बाद उनसे मिलने वाले सबक को भुुला दिया जाता है।
इस हमले के बाद भारत-पाक सीमा पर तनाव चरम शिखर पर पहुंच गया है और जैसा कि इस तरह के हर आक्रमण के बाद होता है, इस हमले की भी सर्वत्र निंदा की जा रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। हर बार ऐसे प्रत्येक हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहरा कर कत्र्तव्य की इतिश्री मान ली जाती है।
परंतु प्रश्र तो यह है कि यदि हम अपनी अत्यंत महत्वपूर्ण सीमाओं, अपनी सेनाओं और महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों की ही सुरक्षा नहीं कर सकते तो फिर भला आम नागरिकों की सुरक्षा कैसे की जा सकती है?
ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि देश भर में सैनिकों की ड्यूटी की अदला-बदली की व्यवस्था के विकल्पों पर विचार करने के अलावा सीमाओं पर सभी सुरक्षा प्रबंधों की समीक्षा करके उनमें पाई जाने वाली त्रुटियों को दूर किया जाए। अकेले पश्चिमी क्षेत्र में ही कम से कम 8000 ऐसे ठिकाने हैं जहां से शत्रु घुसपैठ कर सकता है।
इसके अलावा गुप्तचर तंत्र द्वारा दी गई चेतावनियों को निम्रतम स्तर तक पहुंचाने की व्यवस्था करने, सैनिकों की अदला-बदलीे के दौरान व सैन्य काफिले की सुरक्षा के लिए विशेष सुरक्षा बल लगाने की भी जरूरत है।
इस बारे आंतरिक सुरक्षा की नियमित समीक्षा करके इस समस्या का स्थायी समाधान तलाश करने और जिस किसी स्तर पर भी कोई चूक पाई जाए, उसे तत्काल दूर करने और इस चूक के लिए जिम्मेदारी निर्धारित करके दोषियों को दंडित करने की भी आवश्यकता है।
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