होश टल जाएंगे देखकर ये हॉस्टल



कांकेर जिले के कानागांव का हॉस्टल देखकर आपके होश टल जाएंगे। यहां एक बिस्तर पर सुलाए जाते हैं 3-3 बच्चे। जर्जर इमारत में सीलन भरे कमरे और टपकने वाली छत के नीचे ये बच्चे गुजारते हैं रातें। पीने के लिए फ्लाराइड युक्त पेयजल और खाने में दाल के नाम पर सिर्फ पीला पानी। कुछ ऐसी ही है आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित आदिवासी हॉस्टल की रामकहानी। दर्जनों शिकायतों के बाद भी न तो विभाग जाग रहा है और न सुन रहे हैं सरकारी अधिकारी।ऐसे में सवाल तो यही कि क्या ऐसे ही मिल रहा है आदिवासियों के बच्चों को उनकी शिक्षा का अधिकार? आखिर कौन खा रहा है इन गरीबों के हिस्से का खाना? क्यों नहीं सरकार करवाती है ऐसे छात्रावासों का नियमित निरीक्षण? ये तमाम ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब देने में शिक्षा विभाग के अधिकारी बगलें झांकने पर मजबूर हो जाएंगे।
पानी में फ्लाराइड और नहीं मिलता गुणवता युक्त खाना, बच्चे खुद ही धोते हैं अपनी-अपनी थाली, करते हैं छात्रावास की सफाई
कांकेर ।
21 बिस्तरों पर सोते हैं 47 बच्चे-
कानागांव के छात्रावास में रहकर पढ़ाई करने वाले 47 बच्चों के लिए दो कमरों में 21 बिस्तरों की व्यवस्था की गई है।  बदइंतजामी के चलते रात में बच्चे ठीक से सो नहीं पाते हैं।  बिस्तर की कमी के कारण एक बेड पर दो या तीन छात्रों को एक साथ सोकर रात गुजारनी पड़ रही है।  ये बच्चे कई बार सोते समय बिस्तर से जमीन पर गिर जाते हैं। छात्रावास की छत जर्जर हो चुकी है, बारिश होने पर छत से पानी टपकता रहता है।  बावजूद इसके छत की मरम्मत कराने के लिए ध्यान नहीं दिया जा रहा है।  छात्रावास में शुद्ध पेयजल की सुविधा नहीं होने के कारण आदिवासी बच्चों को आयरन युक्त पानी से अपनी प्यास बुझानी पड़ रही है।
हैंडपंप से आता है फ्लोराइड युक्त पानी-
 परिसर में लगे हैंडपंप से फ्लोराइड युक्त पानी आ रहा है।  जानकारी के लिए बता दें कि फ्लोराइड युक्त पानी के सेवन से शरीर में दर्द होने लगता है तथा दांत पीले होकर गिरने लगते हैं।
दाल के नाम पर परोसते हैं पानी-
आदिवासी छात्रावास के मिड डे मील की स्थिति बेहद खराब है।  यहां दाल के नाम पर सिर्फ पानी परोसा जा रहा है।  बच्चों की थाली में रखे गए भोजन के स्तर को देखकर बता पाना मुश्किल है कि दाल में पानी है या पानी में दाल है।  बच्चों को मैन्यू के अनुसार भोजन नहीं परोसा जा रहा है।  इसका असर बच्चों की सेहत पर पड़ता दिख रहा है।  मध्यान्ह भोजन खाने के बाद बच्चों को स्वयं ही थाली को धोना पड़ता है।
कम्प्यूटर भी हो चुके हैं खराब-
यहाँ महज दो शिक्षकों के भरोसे छात्रों की पढ़ाई हो रही है, एक शिक्षक का पद आज भी खाली है, जिसे भरने की मांग लंबे समय से की जा रहीं है।  पिछले दो साल से छात्रावास में लगाया गया कम्प्यूटर रख-रखाव के अभाव में खराब हो गया है।  खराब कंप्यूटर को न तो सुधारा गया और न ही नए कंप्यूटर की व्यवस्था की गई है।


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