गरीब हटाओ अभियान

खटर-पटर

निखट्टू-
बचपन में एक कार्टून देखा था जिसको उस वक्त के नामी कार्टूनिस्ट रंजित ने बनाया था। दरअसल देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक नारा दिया था, कि गरीबी हटाओ... तो एक गरीब का सवाल था कि आखिर कैसे? उसके बाद जब शाम को गांव में अलाव जला और लोग इक_े हुए तो मैंने वो कार्टून लोगों को दिखाया।  उसी वक्त हमारे पड़ोसी बेंचू कक्का कहा था कि अरे बेटा ये लोग गरीबी नहीं गरीब हटाने की कोशिश में लगे हैं। आप देखना एक दिन ऐसा आएगा कि देश से गरीब को जबरिया हटाया जाएगा। अब करीब-करीब ऐसा ही दिखाई दे रहा है। छत्तीसगढ़ से लेकर पूरे देश में गरीबों के साथ जो अन्याय हो रहा है उसको कोई भी देखने वाला नहीं है। इनको अब न तो शिक्षा मिलेगी और न ही इनके बच्चे बड़े लोग बन पाएंगे। इस देश की सरकार ने जो भी कानून बनाए हैं सब के सब अमीरों और बड़े लोगों के लिए। इस देश में जहां की शिक्षा विश्व की मानक शिक्षा से पचास साल पीछे चल रही है। उसको भी चलाने में सियासत का सहारा लिया जा रहा है। शिक्षा के अधिकार के नाम पर सिर्फ अच्छे लोगों को परेशान किया जा रहा है। अब आप ही बताइए कि किस गरीब के पास एक करोड़ रुपए हैं जो अपने बेटे को एमबीबीएस डॉक्टर बनाएगा? कमोबेश यही हालत दूसरे भी तकनीकी कोर्सेज की है। तो वहीं पूर्ववर्ती सरकार के एक बड़े अधिकारी ने गरीबों की सीमारेखा तय कर दी थी। उनके अनुसार गांवों में  28 और शहर में 32 रुपए कमाने वाला गरीब नहीं है। इसके बाद बात आई कि इतने में तो एक वक्त का भी ढंग से खाना भी नहीं होगा। तो उनसे भी एक बड़े नेता निकलकर आ धमके उन्होंने कहा कि मुंबई के होटलों में तो 5 रुपए में भरपेट भोजन मिलता है। इसके बाद एक दूसरे प्रकट हो गए उन्होंने कहा कि दिल्ली में तो गुरुद्वारों में लंगर फ्री रहती है। यहां एक पैसा भी नहीं लगता। अब ऐसी दुर्दशा देख-देखकर देश के गरीबों का दिल कितना रोया होगा कह नहीं सकते। मजेदार बात जो लोग इस योजना की हिमायत कर रहे थे या फिर इसको बनाया था वे सरकारी खजाने को हर महीने लाखों का चूना लगाते हैं। इनकी कमाई भी सालाना कई करोड़ की बताई जाती है। अब इनके नीचे के अधिकारियों को ही आप ले लीजिए। क्या पाएं क्या खाएं वाली दशा में जी रहे हैं। गरीबों के बच्चों को पोषाहार के नाम पर सड़े चने और सड़ा गेहूं खिलाया जा रहा है। तो इसी योजना को प्रदेश के सुखिया मुखिया देश की सबसे बेहतरीन योजना बताते हुए नहीं थकते। गरीबों की हालत देखकर अब तो एक शायर का वो  शेर याद आता है कि- अंधेरा है या तेरे शहर में उजाला है, हमारे जख़्म पे क्या फर्क पडऩे वाला है। तो समझ गए न सर....अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर तो फिर कल आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय- जय।
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