तीन तिगाड़ा ने काम बिगाड़ा
प्रदेश में अफसरशाही की लापरवाही का किस्सा कोई नया नहीं है। इसकी शिकायत राज्य के तमाम मंत्रियों और सांसदों ने मुख्यमंत्री से कई बार की है। इसके बावजूद भी ये प्रशासनिक मशीनरी सुधरने का नाम तक नहीं ले रही है। तो इन्हीं की आड़ लेकर कुछ भू-माफिया लगातार कानून-व्यवस्था से खिलवाड़ करने में लगे हैं। इनमें से कुछ को नेताओं का अनैतिक संरक्षण प्राप्त है। ये जहां भी मौका पाते हैं चौका जडऩे से नहीं चूकते। मामला चाहे सरकारी जमीन हथियाने का हो या फिर आंकड़ों की बाजीगरी करने का। सारा खेल यही मशीनरी खेल रही है। इसी की बदौलत ये मशीनरी नोटों की गड्डियों में डण्ड पेल रही है। राज्य का एसीबी भी समय-समय पर जब भी उसकी तंद्रा टूटती है, छापा मार कर अपनी पीठ ठोंक लिया करता है। तो वहीं राज्य के कुछ तथाकथित पत्रकार भी इन अनैतिक कामों के बदले जमकर चांदी काट रहे हैं। इनकी शह पर ही शहर की बर्बादी हो रही है। कहने को तो ये लोग तमाम बड़े और छोटे अखबारों से जुड़े हैं मगर लेखनी के कितने धनी हैं ये उनके लिखे समाचारों को देखकर आसानी से समझ में आ जाता है। इनके इन्हीं खराब कर्मों के कारण ईमानदारी से काम करने वाले पत्रकारों को भी शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। लोगों का विश्वास मीडिया से उठता जा रहा है। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि इन लोगों ने पत्रकारिता की दशा और दिशा दोनों बिगाड़ कर रख दी है। पत्रकारिता को लेकर जो लोग मुगालता पाल रखे हैं उनकी बात हम नहीं करते, मगर एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि एक योग्य संपादक व सह संपादकों से लेकर तमाम संवाददाताओं और शिक्षित लोगों की पूरी चेन मिलकर 24 घंटे मेहनत करके एक अखबार निकालती है। उसी अखबार को एक 8वीं पास रिक् शे वाला 5 मिनट में कैंसिल कर देता है। यानि 18 पेज का अखबार उसको पांच मिनट से ज्यादा रोक नहीं पाया। सवाल उठता है कि आखिर क्यों? क्योंकि इसमें पठनीय सामग्री की बजाय सीईओ के इशारे पर सरकारी विज्ञप्तियों को ठूंस दिया गया रहता है। इस भ्रष्ट हो चुके तंत्र को रोकने के लिए न सिर्फ लोक को जागृत होना पड़ेगा बल्कि लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ को अब अपनी कार्यशैली बदलने की जरूरत है। हालांकि इसके दूर-दूर तक कोई भी आसार नज़र नहीं आते।
अफसरशाही जब तक अपने काम करने का तरीका नहीं बदलेगी। नेता जब तक ईमानदार नहीं होगा। ठेकेदारों और भू-माफियाओं पर शिकंजा कस पाना ना मुमकिन है। ऐसे में कोशिश ये की जानी चाहिए कि जब सरकार इतना बढिय़ा वेतन दे रही है तमाम सारी सुविधाएं दे रही है तो फिर घूस किस बात की? घुसखोर अफसरों और नेताओं पर कार्रवाई के लिए कठोर कानून बनाने की जरूरत है, ताकि इनकी कार्य प्रणाली सुधर सके।
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