दावों और दवाई की तल्ख़्ा ह$कीकत





जिस राज्य में मेडिकल कॉलेज पर मेडिकल कॉलेज खुलते जा रहे हों। जिसको केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री स्वर्ग बता रहे हों। जिस राज्य का मुखिया खुद डॉक्टर हो। जहां करोड़ों का बजट दवाओं के लिए अॅलाट होता हो। जहां बड़ी तादाद में दवाएं कहीं हाइवे के किनारे तो कहीं स्कूल के मैदान में मिलती हों। उस राज्य में किसी गरीब का बेटा दवाओं के अभाव में मर जाए तो इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है? कोरबा के वनांचल में ऐसी ही घटनाएं सामने आईं जहां दवाओं के अभाव में दो गरीब बच्चों की मौत हो गई। तो वहीं सरकारी अस्पतालों पर ताले लटकते रहे और गरीब अपने बच्चों के इलाज के लिए इधर-उधर भटकते रहे। तो कभी प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टर्स के पैरों पर सिर पटकते रहे मगर किसी ने उनकी मजबूरी नहीं सुनी। किसी का भी दिल नहीं पसीज़ा । महंगी दवाएं नहीं खरीद पाने के कारण उस गरीब के बच्चे की मौत हो गई। राज्य में बदहाल होती स्वास्थ्य सेवाओं का इससे शर्मनाक नमूना और क्या हो सकता है? इससे पूर्व सरगुजा के मैनपाट में डायरिया से 250 से भी ज्यादा आदिवासियों की मौत हो गई थी। वहां भी स्वास्थ्य विभाग के लोग तब पहुंचे जब लोग अपने मरे हुए परिजनों की चिता जलाकर क्रिया कर्म की चिंता में लगे हुए थे। हमारी सरकार ने मुद्दे को प्राथमिकता से उठाया । हमारी खबर का असर हुआ कि नई दिल्ली से सोनिया गांधी ने मामले को संज्ञान में लिया और वहां से 3 सदस्यीय दल भेजा। उसके सामने भी प्रदेश के विद्वान अधिकारियों ने उन आदिवासियों को अमीर बता दिया। इनका तर्क था कि इन आदिवासियों का नाम तो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों की सूची में है ही नहीं। ऐसे में अब सवाल तो यही उठता है कि क्या राज्य सरकार के अधिकारी नींद में काम करते हैं? अगर ऐसा नहीं है तो उन फटेहाल आदिवासियों का नाम गरीबीरेखा की सूची से आखिर कैसे हटाया गया? इस पर कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं हुआ। इससे भी ज्यादा शर्मनाक बात तो ये कि दिल्ली से जांच दल दौड़कर यहां चला आया और हमारे राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अपने  शासकीय आवास से हिले तक नहीं। इसके बावजूद भी लोग पता  नहीं क्यों उनके कार्यों की प्रशंसा के झूठे पुल बांधने से नहीं चूक रहे हैं।
प्रदेश की जनता इस बात को भी बखूबी समझती है, तो वहीं भाजपाई मंत्री और नेता इस राज्य की जनता को। जहां एक चेप्टी पर ही दूसरे का वोट दूसरे को देने लोग दौड़ जाते हों। उनसे किसी बदलाव की उम्मीद रखना ही बेमानी है। अलबत्ता नई पीढ़ी समझदार है। उसको अपनी जिम्मेदारियां पता हैं। अगर ये पीढ़ी इस बार चुनाव में जाग गई तो समझ लीजिए कि ऐसे निकम्मे मंत्रियों और नेताओं का पत्ता साफ होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि आगामी विधान सभा चुनाव में प्रदेश की जनता इनको इनका असली चेहरा जरूर दिखाएगी।

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव