अस्पतालों में दावे मिलते हैं दवाई नहीं



मलेरिया बुखार से मर गया बोधन सिंह का बाबू -


 मर्ज है लाइलाज कह देते, इतनी महंगी दवाएं क्यों लिख दी। जी हां कुछ ऐसा ही हुआ कोरबा के वनांचल ग्राम साखो के बोधन सिंह के बेटे बाबू के साथ। उसको मलेरिया का बुखार था। उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गया मगर वहां न डॉक्टर मिले न दवाई, लिहाजा उसने अपने बच्चे को सृष्टि हॉस्पिटल कोरबा में भर्ती करवाया। तो यहां के डॉक्टर्स ने इतनी महंगी दवाएं लिख दीं जो खरीद पाना उसके वश में नहीं थीं। लिहाजा उसका डेढ़ साल का बेटा चल बसा। मानवता को शर्मसार करने वाली इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए कम होगी। जिस राज्य का मुख्यमंत्री खुद डॉक्टर हो, वहां किसी गरीब के बेटे की मौत  बिना दवाई के हो जाए तो इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है? मगर सच्चाई तो यही है कि यहां के अस्पतालों में दावे तो मिलते हैं पर दवाई नहीं मिलती। सवाल उठता है कि आखिर दवाओं के नाम पर जो करोड़ों का बजट आता है वो साल भर में ही कहां चला जाता है?गरीब हर बार ऐसे ही छला जाता है।
आखिर कौन खा रहा है करोड़ों की दवाई, कहां गए वे विकास के हवाहवाई दावे
कोरबा।

क्या है पूरा मामला-
जिला मुख्यालय से करीब 90 किलोमीटर दूर पोड़ी-उपरोड़ा ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले बगबुड़ा के पास स्थित ग्राम साखो में खेती-किसानी करने वाले ग्रामीण ओम सिंह राज के डेढ़ साल के पुत्र बाबू पिछले 20 दिन से बुखार से पीडि़त था। पहले तो गांव के सरपंच बोधन सिंह ने बुखार उतरने की दवा पैरासिटामाल दी, पर बच्चे को राहत नहीं मिली। सरपंच बोधन सिंह ने बताया कि उप स्वास्थ्य केंद्र बना तो है लेकिन यहां कोई डॉक्टर नहीं आता। मैंने कलेक्टर, सांसद व विधायक को अनेक बार पत्र देकर उप स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर की मांग की है, मगर आज तक मदद के लिए कोई भी आगे नहीं आया। जिला मुख्यालय के दफ्तरों में बैठे अधिकारी दावे तो बड़े -बड़े करते हैं मगर अस्पतालों में दवाई नहीं मिलती।
डेढ साल का ही एक और बच्चा मरा-
 वहीं दो दिन पूर्व ओम सिंह नामक ग्रामीण का डेढ़ वर्षीय बालक की भी मलेरिया के चपेट में आने मौत हो गई। बताया जा रहा है कि गांव के अधिकांश लोग मौसमी बीमारी  के चपेट में आ गए हैं। इसकी वजह से कई ग्रामीण यहां बीमार हैं और कईयों की हालात गंभीर बनी हुई है। वनांचल क्षेत्र में झोलाछाप डॉक्टर धड़ल्ले से अपनी-अपनी दुकानें चला रहे हैं।
यहां चलती हैं झोलाछाप डॉक्टरों की दुकानें-
 लेमरू से लेकर लामपहाड़, डोंगरमाना तक झोलाछाप डॉक्टर ही ईलाज कर रहे हैै। हाल ही में कलेक्टर ने बैठक लेकर झोलाछाप डाक्टरों पर अंकुश लगाने के कड़े निर्देश दिए थे जिसका पालन नहीं हो रहा है।

वर्जन-
 स्टाफ की कमी की वजह से डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मियों की नियुक्ति साखो उप स्वास्थ्य केंद्र में नहीं की जा सकी है। करीब 15 दिन पहले पोड़ी-उपरोड़ा के बीएमओ डॉ.  दीपक सिंह उस क्षेत्र का दौरा करने गए थे। यदि कुछ ग्रामीण अस्वस्थ होंगे, तो पुन: उस क्षेत्र में स्वास्थ्य विभाग की टीम भेजी जाएगी।
डॉ.पी.एस. सिसोदिया
सीएमओएच
बॉक्स-
कौन खा रहा करोड़ों की दवाई-
हर साल स्वास्थ्य विभाग को करोड़ों रुपए दवाओं की खरीदी करने के लिए जारी किए जाते हैं। सच्चाई ये है कि अस्पतालों में दवाएं पूरे साल नहीं मिलतीं। ऐसे में सवाल तो यही है कि आखिर कौन खा रहा है करोड़ों की दवाई? अस्पतालों में डॉक्टर समय पर कभी भी नहीं आते। जो आते भी हैं वो अपने आपको भगवान के ऊपर समझते हैं। गरीबों के साथ ऐसा बर्ताव करते हैं कि बताते नहंीं बनता। यही कारण है कि इन अस्पतालों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले गांवों में लोग बेमौत मारे जा रहे हैं।
 एक करोड़ रुपए हो गई एमबीबीएस की फीस-
सरकार ने प्राइवेट मेडिकल कालेजों की फीस भी बढ़ा दी। नई दर के अनुसार अब पालकों को अपने बच्चों को एमबीबीएस की डॉक्टरी पढ़ाने के लिए एक करोड़ रुपए खर्च करने होंगे। ऐसे में अब अगर कोई गरीब अपने मेधावी बच्चे को डॉक्टर बनाने का सपना देख रहा है तो उसे भूल जाना ही श्रेयस्कर होगा।
डॉक्टर से हाथापाई गैरजमानती अपराध-
राज्य की कैबिनेट ने पिछले दिनों ही एक कानून बनाया है। इसके तहत अगर किसी भी मरीज के परिजनों ने किसी भी डॉक्टर के साथ हाथापाई की तो ये गैरजमानती अपराध होगा और सरकार उसको दंडित करेगी। अब सवाल ये उठता है कि क्या इस कानून की आड़ लेकर डॉक्टर्स को खिलवाड़ करने की छूट खुद सरकार ने दी है? उनकी मर्जी किसी को भी बता देंगे कि आपने उनके साथ हाथापाई की और बस आप तो नप जाएंगे।

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