कानून तोड़ती अफसरशाही



संपादकीय-

सरकार कानून बनाती है और अफसरशाही उसका क्रियान्वयन करती है। तो जनता उसका पालन करती है। अब अगर कानून के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी संभालने वाले अफसर ही उसका मजाक बनाने लगें तो फिर उसका पालन कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है? प्रदेश में एक नहीं अनेकों बार राष्ट्रीय ध्वज की अवमानना के दर्जनों मामले सामने आ चुके हैं। इसके बावजूद भी अफसरशाही  इन पर कार्रवाई नहीं करती। हर मामले को जांच के नाम पर अटकाया और लटकाया तो कभी-कभी भटकाया जा रहा है। यही कारण है कि अब आम जनता की आस्था कायदे कानून से परे हटती जा रही है। अफसरों की हालत तो यहां तक बिगड़ चुकी है कि प्रदेश के एक प्रशासनिक अधिकारी राज्य के दौरे पर आए प्रधानमंत्री के सामने काला चश्मा लगाए जा पहुंचे। इसके बाद जब पीएमओ ने उनसे जवाब तलब किया तो उसको भी बरगला दिया गया। हाईलेबल पर मामले का निपटारा हुआ वे आज भी अपनी कुर्सी पर जमे हुए हैं। कहीं न कहीं इसका संदेश अफसरशाही में यही गया कि जब प्रधानमंत्री को कुछ नहीं समझते तो फिर भला ये जनता किस खेत की मूली है? यही कारण है कि राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह धराशायी हो चली है। इसमें कोई दो राय नहीं है। इसके साथ ही साथ अब तो इसमें सुधार की आशा भी लोग छोड़ते जा रहे हैं। सरकार की छवि लगातार धूमिल करने वाले ये अधिकारी कानून का खून करने पर आमादा हंै और जनता तमाशबीन बनी देख रही है। सीधी भाषा में कहें तो प्रदेश के चंद अफसरशाह पूरी व्यवस्था को तबाह करने पर उतारू हैं। ये बात हम नहीं प्रदेश के तमाम सांसद नेता और मंत्री तक एक नहीं कई बार कह चुके हैं। इसके बावजूद भी कोई सुधार नहीं आना प्रदेश में किसी आसन्न खतरे का संकेत है।
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