शाला जिसने राज्य के डीजी को भी हिला डाला





6वीं के छात्र नहीं लिख पाए संध्या तो गुरुजी को नहीं आती टेलीविजन की स्पेलिंग


 शनिवार को  राज्य के डीजी (एंटी नक्सल ऑपरेशन्स) डीएम अवस्थी अपने एक दिवसीय प्रवास पर बालोद पहुंचे।  डीजी उस वक्त हतप्रभ रह गए जब बच्चे हिंदी में संध्या नहीं लिख पाए और शिक्षक टेलीविजन की स्पेलिंग नहीं बता पाए। तो वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर भाजपा के केंद्रीय मंत्री तक लगातार प्रदेश की शिक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। ऐसे में सवाल तो ये है कि आखिर सच कौन बोल रहा है? सरकार के मंत्री या फिर वो डीजी एंटी नक्लस ऑपरेशंस जिनके आगे बच्चे तो बच्चे शिक्षक भी गुणवत्ता में फेल साबित हो गए। सवाल तो ये भी है कि क्या ऐसी ही लोग दिला पाएंगे गरीबों के बच्चों को उनकी शिक्षा का असली अधिकार?

शिक्षकों को दी चेतावनी-
बालोद।
शिक्षा गुणवत्ता अभियान के दौरान अवस्थी ने जिला मुख्यालय के शिकारीपारा मिडिल स्कूल में  छात्रों के बीच पहुंचकर उनसे सवाल-जवाब किए।  उन्हें जो उत्तर मिले, उससे बालोद के स्कूल में शिक्षा की दुर्दशा देख डीएम अवस्थी भावुक हो उठे।  उन्होंने शिक्षकों को चेतावनी दी कि जब वे अभियान के दूसरे चरण में यहां आएं तो यह स्थिति नहीं दिखनी चाहिए।
रटे-रटाए जवाब दे रहे थे बच्चे-
दरअसल डीएम अवस्थी जब स्कूल पहुंचकर कक्षा 6 के बच्चों से मिल कर सवाल-जवाब करने लगे तो कई सवालों के जवाब बच्चे बड़े रटे-रटाए अंदाज में दे रहे थे, जिसे भांपते हुए डीजी ने घुमाकर सवाल पूछे तो बच्चे सही जवाब नहीं दे पाए।  इससे डीजी समझ गए कि उनके आने से पहले बच्चों को जवाब रटा दिए गए हैं।
सामान्य शब्दों को लिखने में लडख़ड़ा गई गुरुजी की चाक-
बच्चों को बुलाकर जब उन्होंने  हिंदी व अंग्रेजी के विभिन्न शब्दों को लिखने के लिए कहा, तो 1-2 बच्चों को छोड़कर कई बच्चे गलत शब्द लिख रहे थे।  बच्चे तो बच्चे, शिक्षकों का भी यही हाल था।  कई सामान्य से शब्दों को भी लिख पाने में उनकी चाक ब्लैक बोर्ड पर लडख़ड़ा रही थी।
शासन से मिल चुका है पुरस्कार-
चौंकाने वाली बात तो ये है कि इसी  बालोद जिले के शिक्षा विभाग को शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे कार्यों के लिए शासन स्तर पर पुरस्कार मिल चुका है। वहींं दूसरी ओर शिक्षकों और छात्रों का ये हाल चौंकाने वाला है। ऐसे में सरकार किस तरह से आंकड़ों की बाजीगरी करने में लगी है ये बात भी आसानी से समझ में आ जाती है।

बॉक्स-
 ऐसे अध्यापकों को सातवां वेतनमान -
शासन व्यवस्था के नाम पर इससे बढिय़ा मजाक और क्या हो सकता है कि जिन अध्यापकों को टेलीविजन की स्पेलिंग नहीं मालूम, उनको सरकार सातवां वेतनमान दे रही है। जब कि शिक्षा की गुणवत्ता का बंटाधार इन्हीं लोगों ने किया है।




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