आहत होता सोनहत



अच्छे दिनों की आस दिखाकर कुछ खास लोग कोरिया की सोनहत विधान सभा तो कुछ जिले से लोक सभा चुनाव में पास हो गए। इनको पास कराने वाले हर बार की तरह इस बार भी फेल हो गए। अब एक बार जीते तो पांच साल की छुट्टी। इनकी इस लापरवाही का  $खामियाजा न जाने कितने ग्रामीणों को भोगना पड़ रहा है। सड़क, सुरक्षा, चिकित्सा, शिक्षा और पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं तक इस कदर बदहाल हैं कि यहां आकर लगता है अ_ारहवीं शताब्दी में आ गए हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत स्वीकृत मार्ग पर पैदल चलना मुहाल है। तो वहीं ग्रामीण नाले का गंदा पानी पीने को विवश हैं। तो वहीं प्रशासन और शासन के अधिकारी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। मामले का शर्मनाक सच तो ये है कि जीतने के बाद से इनकी विधायक और संसदीय सचिव सरकारी लालबत्ती वाली गाड़ी में तो घूमती हैं, मगर उनको इन निरीह ग्रामीणों की चिंता रत्ती भर भी नहीं है। देश के सांसदों और विधायकों तथा मंत्रियों और अफसरों का वेतन बढ़ा दिया गया, मगर जिनकी जेब से ये पैसा आता है उनको उसी नर्क में मरने के लिए छोड़ दिया गया, जिसमें वो कई दशकों से रहने को अभिशप्त हैं। ऐसी व्यवस्था की जितनी भी निंदा की जाए कम होगी। बच्चों के शिक्षा का अधिकार से लेकर आम जनता तक की मूलभूत अधिकारों का हनन करने वाले ये लोग पता नहीं किस मुंह से तनख्वाह ले रहे हैं? इनकी नक्कारापंथी की जांच होनी चाहिए। सुराज की सरकार अगर असल में गरीबों की हिमायती है तो उसको चाहिए कि ऐसे अधिकारियों और विधायकों की जमकर खबर ले। उनको उनके किए की ऐसी सजा दे कि आने वाले विधायकों और सांसदों के लिए एक मिसाल कायम हो जाए, मगर सवाल तो यही है कि क्या ऐसा काम प्रदेश की भाजपा सरकार कर सकेगी? आलम ये है कि भाजपा संगठन खुद इन दिनों अंतर्कलह के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में संगठन के कर्ताधर्ता कोई भी विवाद मोल नहीं लेना चाहेंगे। तो वहीं लाभ के पद पर नई दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को तो प्रदेश के मुखिया पहले ही ये कह कर नकार चुके हैं कि संसदीय सचिवों का पद लाभ का पद नहीं है। ऐसे में इस विधान सभा की महिला विधायक पर कार्रवाई होगी किसी भी दशा में नहीं लगता । यदि होगी तो एक बात तो तय है कि जनता में इसका बेहद ही सकारात्मक संदेश जाएगा, इसमें कोई दो राय नहीं है।

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