गुणवत्ता को न बताएं धत्ता





राज्य सरकार जिस स्वच्छता अभियान पर अभिमान करती है, उसकी असलियत जानकर लोगों का इससे मोहभंग होता जा रहा है। दूसरों की तो बात ही छोड़ दीजिए जिन नौरत्नों को इस अभियान से जोड़ा गया उन्होंने ही इसका साथ नहीं दिया। ऐसे में सवाल तो यही है कि फिर भला आम आदमी कहां तक इसका साथ निभाता? इस योजना की सारी जमाखर्ची कागजों और फाइलों सरपट दौड़ी। तो वहीं कांकेर के 11 सरपंचों ने तो इससे तंग आकर आत्महत्या की धमकी तक दे डाली। इसके पीछे कारण ये था कि उन लोगों पर शौचालयों के निर्माण करवाने के दौरान कर्ज हो गया था। काम समाप्त हो जाने के बावजूद भी सरकारी खजाने से भुगतान नहीं हो पाने के कारण बकाएदार उनसे तकादा कर रहे थे। इसकी वजह से ये लोग तनाव में आ गए थे। कलेक्टर के हस्तक्षेप के बाद मामले को रफादफा किया गया। तो वहीं पूरे राज्य में शौचालयों के अधूरे गड्ढों में गिरने से 5 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है। तो वहीं कई दर्जन पशुओं की भी मौत हो चुकी है। इतना कुछ होने के बावजूद भी सरकार और उसके अधिकारी अपनी करनी से बाज नहीं आ रहे हैं। इसका दूसरा पेंच तो ये है कि निर्मल ग्राम योजना के तहत बनाए गए शौचालयों को इस योजना में मर्ज कर दिया जा रहा है। इसके बाद पैसों की बंदरबांट हो जा रही है। किसान को क्या पता कि उसके शौचालयों का पैसा अधिकारी कर्मचारी बांट कर खा चुके हैं। कागजों में पुराने शौचालयों को नया बताकर धड़ल्ले से व्यवस्था को धत्ता बता दिया गया। तमाम गांवों में तो शौचालयों में ही जलाऊ लकड़ी और छेना रखा जा रहा है। कुछ जगहों पर बनवा तो दिया गया मगर उसकी गुणवत्ता इतनी खराब है कि वहां कोई भी शौच के लिए जाना ही नहीं चाहेगा। कुल मिलाकर इस सारी योजना का फायदा खाने और खिलाने वालों को मिला। गरीबों और असहायों को तो अधिकारियों ने धमका कर उनसे निर्माण करवा लिया । राज्य सरकार के तमाम अधिकारियों ने ये घोषणा तक कर दी थी कि जिसके घर पर शौचालय नहीं होगा उसको गरीबीरेखा कार्ड पर राशन तक नहीं दिया जाएगा। ऐसे में सवाल तो यही है कि अगर वो शौचालय बनवा लेता तो फिर गरीब किस बात का? मगर सरकार भी आखिर सरकार ही होती है। रोकवा दिया गया तमाम लोगों का राशन।
सरकार को चाहिए कि वो इस योजना का क्रियान्वयन जरूर करे, मगर ये भी देखे कि किसकी हिम्मत है जो आसानी से शौचालयों का निर्माण करवा सकता है। अगर वो नहीं करवा सकता तो सरकारी खर्चे पर शौचालयों का निर्माण करवाया जाए मगर उनकी गुणवत्ता का पूरा ख्याल रखा जाए। यदि गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा जाएगा तो सरकार की सारी कोशिशें बेकार चली जाएंगी, इसमें कोई दो राय नहीं है।

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव