झूठ के ठूंठ पर बैठे लोग

कटाक्ष-


निखट्टू-
पहले कुछ लोग झूठ बोला करते थे। उनको लोग अच्छी नज़र से नहीं देखते थे। कहा जाता था कि वो  झूठा है। उसके बाद कुछ लोग झूठ बोलने लगे। समय बदला और अब आलम ये है कि तमाम सरकारी अधिकारी से लेकर नेता और मंत्री तक झूठ के ठंूठ पर मूंछ ऐंठते बैठे हैं और मज़ाल है किसी की जो चूं भी कर सके? अरे साहब भला हो इस झूठ का कि इनको इतनी ऊंची कुर्सी मिल गई। अरे पूरी जिंदगी अगर सच के भरोसे रहते तो मिल जाती क्या? अमां हम तो कहते हैं ये सदाचार, अनुशासन, अच्छे आचरण ये सब तो बस किताबों में अच्छे लगते हैं। अरे...ठीक वैसे ही जैसे अच्छे दिन प्रधानमंत्री के भाषणों में अच्छे लगते हैं। मैं उनको झूठ बोलने की तोहमत तो नहीं दे सकता,मगर ह$कीकत ये भी है कि आज तक जितना कुछ बोले हैं वो अगर सच हुआ हो तो बताइए? हमें तो कुछ भी सच होता नहीं दिखाई दिया? हर किसी के खाते में 15 करोड़ आएंगे? मियां 15 करोड़ के चक्कर में हम रोड पर जरूर आ गए। आधार के चक्कर में उधार भी मिलना बंद हो गया। बैंक वाले जान गए हैं कि ये कम्बख़्त किन-किन बैंकों से कितना -कितना पैसा उधार ले चुका है? इनके चक्कर में हमारी गरीबी का मजाक उड़ाया जा रहा है। लच्छेदार भाषण देते वक्त बार-बार कहा था कि अच्छे दिन आएंगे। वो तो अब तक आए नहीं अलबत्ता बैंक वाले किश्त वसूलने आ धमके। अब टेंट तो टें बोल चुकी है। इनको टरकाएं कहां से? झूठ बोलते तो बच जाते सच बोलेंगे तो फंस जाएंगे। खैर अब जब सरकार और मंत्री बोल रहे हैं तो हमें भला बोलने से गुरेज़ कैसा। चलो हम भी इनको तीन का तेरह पढ़ा देते हैं। क्योकि बड़े-बुजुर्ग़ कह गए हैं कि जैसी बहे बयार पीठ तैसी कर दीजै। अर्थात जैसी हवा बहे उसी की ओर पीठ रखिए सुखी रहिएगा...क्यों समझ गए न सर.... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर...कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।
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