कालातीत होती शिक्षा पर सवाल





विदेशों के तमाम संस्थानों ने भारतीय शिक्षा को पचास साल पीछे बताया है। तो हमारे देश के कुछ तथाकथित विद्वान इसको नकारते फिर रहे हैं। उनको डर है कि कहीं उनकी दुकानदारी न प्रभावित हो? इस सच्चाई को बिल्कुल भी नहीं नकारा जा सकता कि भारत विश्वगुरू रहा है का जुमला रटाते-रटाते इन नीति नियंताओं ने हमारे बच्चों के भविष्य की राह में इतने कांटे बो डाले कि अब उनको विदेशों में नौकरी मिल भी पाएगी इसमें संदेह है। हमारे ही देश के वैज्ञानिकों ने अमेरिका को एक विकसित राष्ट्र बनाया। आज हमारे ही बच्चे शिक्षा में कैसे पिछड़ गए? इसका जवाब न तो देश के नेता दे रहे हैं और न ही शिक्षाविद्। दुनिया को वेदों की भाषा सिखाने वाले देश के बच्चों का तकनीकी ज्ञान अचानक कैसे पचास साल पीछे चला गया ये एक विचारणीय प्रश्र है।
 इसके पीछे का कारण ये है कि हमारे देश में योग्यता से ज्यादा डिग्रियों को महत्व दिया जाने लगा। सरकार की इसी गलती का फायदा उद्योगपतियों ने उठाया और शिक्षा का बाजारीकरण कर दिया। अब तो आलम ये है कि देश में तमाम कोर्सेस की डिग्रियां थोक में मिलने लगी हैं। जिनकी जेब में पैसा है वो अपने बच्चों को खरीद कर दिलवा देंगे। जो गरीब है उसके बच्चे तो इसका स्वप्र भी नहीं देख सकते। तो वहीं कुछ तथाकथित विद्वानों ने अपने अधकचरे ज्ञान को युवा पीढ़ी के कंधों पर लादने की कसम खा रखी है।  उनका तर्क है कि शिक्षा को सरल किया जाए? जब कि वे भी वही किताबें पढ़कर इस मोकाम पर पहुंचे हैं, मगर अब आखिर कुछ तो ज्ञान बघारना ही पड़ेगा न? लिहाजा अब वे जबरदस्ती तर्क ठेलने लगे हैं। लिहाजा स्कूलों में बच्चों की किताबों से नैतिक कथाएं और तमाम ज्ञानवर्धक सामग्री को आउटडेटेड बताकर निकाल फेंका गया। तो वहीं वीर रस के कविओं और संतों के दोहे और कुंडलियों और छंदों को भी क्लिष्ट बताकर बाहर कर दिया गया। परीक्षा की भी बंदिश समाप्त कर दी गई थी। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि आखिर अब बच्चों में वो गुणवत्ता आएगी कहां से? सरकार और उसमें बैठे तमाम लोग अपने-अपने वेतन और भत्तों की गणना में जुटे हैं। तो वहीं शिक्षा मंत्री और उनके परिवार के लोगों के बारे में किसी को भी बताने की जरूरत नहीं है।
यहां असलियत ये है कि बच्चे अब सरकारी शालाओं से तौबा करने लगे हैं। ऐसे में अब अगर इसको जल्दी नहीं रोका गया तो वो दिन दूर नहीं जब प्राथमिक शालाओं में बच्चों को ढूंढना पड़ेगा। सरकार को चाहिए कि वो शिक्षा के इन सारे सेलिबस में अमूलचूल परिवर्तन कर उसको ज्ञानवर्धक व उपयोगी बनाए। इसके अलावा शिक्षा के साथ ही साथ अनुसंधान पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिया जाए।  अत्याधुनिक तकनीक के ऊपर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिया जाए। देश के छात्र-छात्राओं को इस काबिल बनाया जाए  कि उनकी विदेशों में मांग बढ़े।

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव