कानून को ठेंगा दिखा रहा मनरेगा






केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा में फर्जी मस्टररोल बनाकर भ्रष्टाचार किए जाने के तमाम मामले सामने आ चुके हैं।  कानून कायदे को ठेंगा मनरेगा के ही अधिकारी दिखा रहे हैं। इन मामलों में ये भी बात सामने आई कि जिनको मजदूरी का भुगतान किया गया वे तो दस साल पहले ही मर चुके थे? तो कहीं उनको मिला जो कभी भी कहीं काम करने जाते ही नहीं। इन सारी चीजों के लिए  ग्राम पंचायत के जनप्रतिनिधि, सचिव, रोजगार सहायक एवं भुगतान करने वाले डाकपाल (पोस्ट मास्टर) जिम्मेदार होते हैं। यदि किसी भी शहर का डॉकपाल ये घोषणा कर दे कि वो किसी भी फर्जी आदमी को भुगतान नहीं करेगा।  तो एक बात तो तय है कि फर्जी भुगतान रुक जाएगा। तो वहीं अब तो सरकारें हर किसी का आधार नंबर ही असली नंबर मान रही हैं।  इसकी खासियत ये भी होती है कि कुछ बैंक बिना हितग्राही के अंगूठे का  निशान लिए उसकी राशि का आहरण ही नहीं होने देते। तो वहीं मनरेगा की मजदूरी सीधे मजदूर के खाते में सीधे डालने की बात हो चुकी है। ऐसे में अगर अब कोई भी सचिव या फिर रोजगार सहायक चाहे कितना भी कुछ कर लें भुगतान कोई दूसरा नहीं उठा सकता है। इसका सबसे अहम कारण ये है कि आधार कार्ड बनाते समय कार्ड बनाने वाले आवेदकों की अंगुलियों और आंख तक की जानकारी अपने पास सुरक्षित रखते हैं। ऐसे में अगर कहीं भी जरा सी भी आशंका हुई तो तत्काल उसकी जांच करवा ली जाती है। गरीबों की इस महत्वाकांक्षी योजना को भी छत्तीसगढ़ में ठीक से लागू नहीं किया गया। आलम ये है कि मुख्यमंत्री की तमाम घोषणाओं के बावजूद भी लोगों को डेढ़ सौ दिनों का रोजगार नहीं दिया जा सका। तो वहीं कुछ लोगों को इससे भी ज्यादा समय तक रोजगार दिया गया और उसका भुगतान भी कर दिया गया। सरकार की ऐसी दोगली नीतियों का ही नतीजा है कि आज छत्तीसगढ़ से बड़ी तादाद में  मजदूरों का पलायन दीगर राज्यों में हो रहा है। शासन-प्रशासन इसको चाह कर भी नहीं रोक पा रहा है।
ऐसे में सरकार को चाहिए कि प्रदेश सभी मजदूरों का पंजीयन और उनके बैंक खाते को आधार कार्ड से सीधे जोड़ दिया जाए। इससे मजदूर की रकम सीधे उसके बैंक खाते में चली जाएगी। तो वहीं बिना थम्ब इंप्रेशन लिए किसी भी मनरेगा कर्मचारी को काम न दिया जाए। जिनता पैसा उतना काम की तर्ज पर मजदूरों को भुगतान किया जाए। इसके साथ ही साथ पहले से लंबित मामलों को प्राथमिकता के आधार पर निपटाया जाए। जिन मजदूरों का भुगतान लंबित पड़ा हो उनको तत्काल इसका भुगतान कर दिया जाए। इससे प्रदेश के मजदूरों का न सिर्फ पलायन रुकेगा, बल्कि राजधानी और प्रदेश के तमाम जिलों में लोगों को अपने-अपने काम करवाने के लिए मजदूर मिलने लगेंगे।
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