सरकारी ढील में गुडफील
प्रदेश के कुछ अधिकारी निजी हितों को साधने के लिए सरकारी खजाने को चूना लगाने पर तुले हैं। इसकी मिसाल जांजगीर-चाम्पा सहित तमाम जिलों में देखने को मिल रही है। यहां कुम्हारों को मिली छूट पर रसूखदार टूट पड़े हैं। यही कारण है कि जिले में अंधाधुंध ईंट के भ_े खोले जा रहे हैं। इसके लिए इनको न तो किसी परमिशन की जरूरत होती है और न ही किसी अधिकारी के पीछे दौडऩे की। सारा काम थोक में हो जाता है। मुफ्त की मिट्टी, सस्ता कोयला भले ही वो चोरी का हो? और तस्करी की लकड़ी के साथ ही साथ यहां बंधुआ मजदूर भी उपलब्ध रहते हंै। यही कारण है कि यहां लाल ईंटों का काला कारोबार बदस्तूर फल-फूल रहा है। ऐसे में इन रसूखदारों को न तो कोई अधिकारी कुछ बोलता है और न नेता। जानकारों की अगर मानें तो अकेले जांजगीर-चाम्पा में ही एक हजार से ज्यादा अवैध ईंट भ_े संचालित होने को तैयार हैं। जैसे ही बारिश समाप्त होगी इनकी दुकान खुल जाएगी। मौसम वैज्ञानिकों की अगर मानें तो वर्षा वैसे भी अब दो चार दिनों की ही मेहमान है। इसके बाद तो इनकी तूती बोलनी शूरू हो जाएगी।
ये ईंट भ_े वाले एक साथ सरकार के चार-चार विभागों को चूना लगा रहे हैं। एक ओर खनिज विभाग के राजस्व, इसमें मिट्टी और चोरी का कोयला शामिल है। तो वहीं वन विभाग की लकडिय़ों और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अलावा कर चोरी जैसे संज्ञेय अपराध इन तथाकथित भ_ा मालिकों द्वारा किए जा रहे हैं। ईएसआई और पीएफ की चोरी अलग। ऐसे में सरकारी ढील के चलते ये लोग गुड फील कर रहे हैं।
सरकार को चाहिए कि वो इसकी गहनता से जांच करवाए और देखे कि उसको कितने का चूना लगाया जा रहा है। इसके बाद इसकी सख्ती से भरपाई करवाए। यदि ईमानदारी से जांच करवाई जाएगी तो एक बड़ा मामला सामने आएगा इसमें कोई दो राय नहीं है।
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