मिशन और कमीशन कक्का

कटाक्ष-

निखट्टू
हमारे आजाद बाबूजी के दो भाई हैं एक मिशन और दूसरे कमीशन । मिशन का जन्म हमारी  दादी से ही हुआ था। जब कि कमीशन बाबूजी के सौतेले भाई हैं, जिनको हम कक्का यानि चाचा कहते हैं।  बाबूजी तो बूढ़े हो चले अब मिशन और कमीशन चाचा जवान हैं। आजकल इन दोनों की ही  तूती बोल रही है। जहां भी जाते हैं दोनों साथ ही साथ जाते हैं। अब यूं कह लें कि ये दोनों ही अब परिवार की पहचान बन चुके हैं। ऐसे में पड़ोसी भी इस बात को बखूबी समझने लगे हैं। ऐसे में जब भी कोई हमारे घर आता है बिना मिठाई के तो कतई नहीं आता। अब आप सोच रहे होंगे कि फिर तो हम मिठाई  खा-खाकर मिठाईलाल हो गए होंगे? अरे नहीं रे भइया उस मिठाई के डिब्बे में कमीशन कक्का घुसे होते हैं। अब ये देखकर मिशन कक्का उन पर बिगड़ जाते हैं,मगर कमीशन कक्का बिना कुछ बोले निकल लेते हैं पतली गली से खंभा बचाकर। मिशन कक्का को ये बड़ा नागवर गुजरता है। वे अब अपने सौतेले भाई को फूटी आंखों देखना नहीं चाहते मगर करें भी तो क्या करें? कुछ कह भी तो नहीं सकते?
जब से कमीशन कक्का बड़े हुए हैं मिशन कक्का ने मूछें रखनी बंद कर दी। हरवक्त क्लीनशेव रहते हैं। एक दिन हमने पूछा था कि कक्का आप अब मूछें क्यों नहीं रखते। बाबूजी की मूछों के तो अंग्रेज भी कायल थे। मिशन कक्का ने हमारे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा कि अभी तुम बच्चे हो इसको बड़ा होने पर ही समझ पाओगे। इसके साथ ही साथ उनके चेहरे पर एक दर्द जो झलका था वो दिनोंदिन गहरा होता जा रहा है।  ये कमीशन कक्का के फेर में हमारे घर की इतनी जग हंसाई हो रही है मगर ये हैं कि आदत से बाज नहीं आते। हमारे घर के लोग तो पता नहीं कितने मंदिरों, मस्जिदों और गिरजाघरों तथा गुरुद्वारों के चक्कर लगाए उनकी एक ही प्रार्थना है कि जैसे भी हो ये हमारे कमीशन कक्का सुधर जाएं। तो आप भी उनके लिए कुछ प्रार्थना लीजिए कर और इसी के साथ हम भी निकल लेते हैं अपने घर.... तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।

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