वेतन-भत्ता और धत्ता
विकास के दावे और उसके पीछे की सारी सच्चाई जानने के बाद सुराज की सरकार से लोगों का मोहभंग हो रहा है। केंद्र सरकार को गुमराह करने के अलावा प्रदेश की अफसरशाही कोई भी उल्लेखनीय काम नहीं कर रही है। अलबत्ता उसको इस काम के लिए सातवां वेतनमान और भत्ते दिए जा रहे हैं। इसके अलावा उसको वे तमाम सुविधाएं भी दी जा रही हैं जिसका वो ह$कदार है। इन सब के बीच पूरे देश में कोई एक व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दे रहा है जो ये पूछ ले कि साहब इनको इतनी सुविधाएं किस काम की एवज में दिए जा रहे हैं? इन्होंने आखिर ऐसा कौन सा तीर मार लिया है कि इनके ऊपर पैसे लुटाए जा रहे हो? कहने को तो देश में पक्ष और विपक्ष हैं। सियासी मुद्दों पर देश की संसद की कार्रवाई रोकने में उस्ताद विपक्ष जैसे ही सांसदों के वेतन बढ़ाने की बात आती है चुपचाप सन्न खींच लेता है। इन सारी बातों को देखने के बाद तो लगता है कि ये सारे लोग ही भीतर ही भीतर मिले हुए हैं। अधिकारियों के मन में ये बात बैठ गई है कि जब बिना काम किए पैसे मिल रहे हैं तो फिर कौन जाए काम करने? देश की सरकार अच्छे दिनों का वादा कर तो दिया अभी तक आधा कार्यकाल पूरा होने को है मगर ये कम्बख़्त अच्छे दिन कहीं नज़र नहीं आए। यहां एक सेक्रेटरी का वेतनमान देश के राष्ट्रपति से भी ज्यादा है। जब कि पहले ये कानून था कि किसी की भी सैलरी राष्ट्रपति के वेतन से ज्यादा नहीं होगी। कुल मिलाकर अंधा बांटे रेवड़ी आप-आप ही देय वाली कहावत चरितार्थ होती दिखाई दे रही है। जब वेतन के नाम पर सभी इक_े हो जाते हैं तो फिर सवाल तो ये भी उठता है कि आखिर ये पक्ष -विपक्ष का ड्रामा क्या जनता को दिखाने के लिए किया जाता है? अगर ये सच है तो फिर सवाल तो ये भी है कि आखिर इस हाईप्रोफाइल ड्रामे का शिकार देश का खजाना क्यों बने?
जैसे सांसदों और मंत्रियों के वेतनमान बढ़ाए गए हैं तो उसके साथ ही एक कानून तो ये भी बनना चाहिए कि जिस पार्टी के सांसदों और विधायकों के चलते विधान सभा या फिर संसद की कार्रवाई प्रभावित होगी। उस दौरान संसद के संचालन पर आने वाला खर्च उनके वेतन से काट लिया जाएगा। ऐसा ही नियम अधिकारियों के लिए भी बनाया जाना नितांत जरूरी है। सबसे पहले तो ये देखा जाए कि वो अधिकारी काम कितना कर रहा है। यदि उसका परफार्मेंस अच्छा नहीं है तो उसको उसके परफार्मेंस के आधार पर ही वेतन दिया जाए। इससे गरीबों का पैसा भी बचेगा और सरकारी अधिकारियों की मनमानी भी रुकेगी। सरकार समय-समय पर लंबित मामलों की समीक्षा भी करे। इसके साथ क्यों लंबित हैं इसकी भी पूरी जानकारी रखे, तब कहीं जाकर लोगों की आस्था अपने लोकतंत्र में पुस्र्थापित हो पाएगी।
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