शूली बनती वसूली





प्रदेश में लगातार अपराधों का अनुपात बढ़ता जा रहा है तो वहीं पुलिस विभाग वसूली में मस्त है। प्रदेश की राजधानी की पुलिस की तो और भी दशा और दिशा दोनों खराब है। वो तमाम काम छोड़कर हेलमेट की वसूली के काम में लगी हुई है। तो वहीं राज्य के सूरजपुर जिले में तो और भी खराब स्थिति है जहां बनारस रोड़ पर चंदौरा थाने के पास ही एक एनजीओ के लोग बाकायदा पुलिस अधीक्षक का लिखित आदेश वाहन चालकों को दिखाकर दबंगई पूर्वक सौ- सौ रुपए की वसूली कर रहे थे। हालांकि सूरजपुर पुलिस अधीक्षक ने इस घटना के बंद हो जाने की पुष्टि की है, मगर सवाल तो यही उठता है कि इतने बड़े अधिकारी कानून को हाथ में क्यों लेते हैं? तो वहीं जानकार ये भी बताते हैं कि वहां मौजूद एनजीओ के गुर्गे खुद को यातायात पुलिस का जवान बता कर वसूली कर रहे थे। तो वहीं कुछ दूर उनका एक आदमी एक गाड़ी में बैठकर उनको निर्देशित कर रहा था। ये सारी चीजे पुलिस की कार्य प्रणाली पर सवालिया निशान लगाती हैं।
प्रदेश सरकार राज्य में बढ़ते अपराध पर अगर लगाम कसना चाहती है तो उसको पुलिस के साथ पूरी सख्ती से पेश आना होगा। एक ओर किसानों की आत्म हत्या मामले पर पूरी तरह घिर चुकी सरकार की मुश्किलें ऐसी खबरें बढ़ा सकती हैं। प्रदेश में हुई किसानों की मौत का रहस्य तलाशने मानवाधिकार आयोग की टीम प्रदेश के दौरे पर जल्दी ही आने वाली है। वो इस बात की भी जानकारी लेगी कि जिन किसानों ने प्रदेश में आत्महत्या की उन पर किसने मानसिक दबाव बनाया। बहुत हद तक संभव है कि इस मामले में सहकारी बैंकों के तमाम अधिकारियों की गर्दन उसकी मु_ी में आ जाए। इसके बाद इस मामले पर ये आयोग क्या कार्रवाई करेगा इसी बात पर प्रदेश की जनता की उम्मीदें टिकी हुई हैं। ऐसे में प्रदेश की पुलिस को वसूली जैसे कामों में लगाने से बचना होगा। जब कि इस बात को भी लोग दबी जुबान से मानते हैं कि इस सारे किए धरे के पीछे सरकार के उच्च तबके का ही हाथ होता है। ऐसे में प्रदेश में अपराध कम हो जाएंगे इसके दूर-दूर तक कोई भी आसार नज़र नहीं आते।

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