बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव

कटाक्ष-

निखट्टू-
संतो.... हमारे धर्म शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि सत्य बोलिए प्रिय बोलिए, अप्रिय सत्य मत बोलिए और प्रिय झूठ भी मत बोलिए यही सनातन धर्म है। सवाल ये है कि  तो फिर आखिर बोलें क्या? अंधे को अंधा नहीं तो फिर क्या कहें? सूरदास कहेंगे तो वो सूरदास थोड़े ही है? अब अगर सच बोलेंगे तो वो तो कड़वा होगा ही। ऐसे में मुसीबत तो आनी ही है। इसी सच बोलने के चक्कर में तमाम लोग नप गए। तमाम मर -खप गए। कुछ थोड़े से लोग थे जो इसकी आंच में तप गए और आज चमक रहे हैं। घोड़े और वाणी तथा इच्छाओं पर जो लगाम कस ले वो वीर होता है। पर ऐसे हैं कितने? लोग झूठ के ठूंठ पर बैठे हैं। मजेदार उस पर भी इस कदर ऐंठे हैं गोया खुद को $खुदा समझ लिया है। ऐसे लोगों की पल भर में ऐसी हवा निकलती है कि पता तक नहीं चलता कि कैसे क्या हुआ? हमारे यहां कहावत प्रचलित है कि बातन हाथी पाइए बातन हाथीपांव। अर्थात अगर आप अच्छी बात कीजिए तो आपको हाथी मिल सकता है। और अगर खराब बात की तो हाथीपांव अर्थात लोग मार-मार कर आपका पैर सूजा देंगे।  इसलिए भइया जो भी बोलो सोच -समझकर बोलो। कबीरदास जी भी कह गए कि- बोली एक अमोल है जो कोइ बोले जानि, हिए तराजू तौलिए तब मुख बाहर आनि। संक्षेप में बस यूं समझ लीजिए कि पहले तोलिए फिर बोलिए। अब सियासत में ही देख लीजिए कि लोग बिना सोचे बोलते हैं लिहाजा उनको तमाम तरह के कष्ट भोगने पड़ते हैं। पहले नेता एक दूसरे पर वार करते थे। फिर धर्म मजहब पर करने लगे, और अब तो हद हो गई कि कुछ नेताओं ने अब हमारी मां-बहन और बेटियों पर भी वार करना शुरू कर दिया है। अब ऐसा काम किया है तो फिर तो उनको हाथीपांव होना ही है.... तो समझ गए न सर... अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर...तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय....जय।

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