बह गया करोड़ों लीटर पानी और सोता रहा निगम







गर्मी शुरू होते ही बूंद-बूंद पानी को तरसती राजधानी को बारिश के पानी से बड़ी राहत मिलती, मगर करोड़ों लीटर पानी आराम से बह गया और निगम के अधिकारी और कर्मचारी सोते रहे। जानकारों का आरोप है कि रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के नाम पर राजधानी में कौड़ी का काम नहीं हुआ है। निगम के निकम्मेपन की वहज से ही आज रायपुर  देश का दूसरा सबसे गंदा शहर है। इसके बावजूद भी एनजीटी की फटकार को दरकिनार कर ये जनप्रतिनिधि आखिर क्या साबित करना चाहते हैं समझ से परे है? इनकी लापरवाही का खामियाजा आने वाली गर्मी में एक बार फिर राजधानी की जनता को भोगना पड़ेगा, इसमें कोई दो राय नहीं है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि आखिर राजधानी में सड़क, शिक्षा, आवास, स्वास्थ्य, सफाई, और पानी देने की जिम्मेदारी किसकी है? और क्या वो अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कायदे से कर रहा है, अगर नहीं तो क्यों?
रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के नाम पर खाली कागजी खानापूरी, अब कह रहे कि ये काम था जरूरी
रायपुर। नगर पालिक निगम के व्हाइट हाउस की सर्व सुविधायुक्त भवनों में कीमती कुर्सियों पर उंघते अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा फिर अगली गर्मी में पूरी राजधानी की जनता को भोगना पड़ेगा। इनकी लापरवाही की वजह से बारिश का करोड़ों लीटर पानी बह गया। रेन वॉटर हार्वेस्टिंग का सिस्टम लगाने के नाम पर निगम के अधिकारियों -कर्मचारियों ने कौड़ी का काम नहीं किया। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या इनको जब प्यास लगती है तभी किसी कुएं की याद आती है? इस साल अच्छी बारिश हुई उम्मीद थी कि अगर इस सिस्टम को कायदे से लागू किया गया होता तो बड़ी मात्रा में पानी बचाया जा सकता था। लेकिन अधिकारियों -कर्मचारियों की लापरवाही के चलते चुल्लू भर पानी भी बचा पाने में निगम नाकाम रहा। अब अधिकारी और निगम के नेता अपनी-अपनी नाकामी पर बहाने बनाने से नहीं चूक रहे हैं।
1.25 लाख से ज्यादा मकान-
एक मोटे आंकड़े के अनुसार राजधानी में लगभग सवा लाख से ज्यादा मकान हैं। इनमें से महज 5 हजार मकानों में ही रेन वॉटर हॉर्वेस्टिंग सिस्टम लगाया गया है। इनमें से कितने मकानों का सिस्टम कायदे से काम कर रहा है ये बता पाना मुश्किल होगा। जानकारों का  तो ये भी मानना है कि इनमें से अधिकांश सिस्टम काम नहीं कर रहे हैं। ये सिर्फ शोपीस बनकर रह गए हैं। अब  इन शोपीसेज के पेट में कितना पानी भरा है ये तो ऊपरवाला ही जाने।
चलाएंगे अभियान : एमआईसी-
जल संसाधन विभाग के एमआईसी नागभूषण राव ने बताया कि नगर निगम में नई बिल्डिंग का नक् शा पास करवाने की पहली शर्त है कि उसमें वर्षा जल संभरण यंत्र लगाया जाए। यदि मकान मालिक ऐसा नहीं करता तो उसका नक् शा ही पास नहीं किया जाएगा।  श्री राव ने आगे कहा कि वे जल्दी ही इसको लेकर एक व्यापक स्तर पर अभियान चलाएंगे। तो वहीं उन्होंने निगम से हुई इस चूक की बात भी पूरी तरह कबूल की। ऐसे में सवाल तो यही है कि यदि ऐसा है तो क्या फिर ये मान लिया जाए कि निगम में होने वाली सारी की सारी गलतियां अधिकारियों और जिम्मेदारों के संज्ञान में रहती हैं? आखिर क्यों नहीं समय रहते इनका कोई निराकरण किया जाता?
मेकाहारा का सिस्टम भी फेल-
जानकारों ने बताया कि प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा में लगाया गया रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी खराब हो चुका है। ये भी ठीक से काम नहीं कर रहा है। इसकी वजह से पूरी बारिश में कई लाख लीटर पानी यूं ही बह गया। यदि इस सिस्टम को ठीक रखा गया होता तो बड़ी मात्रा में पानी बचाया जा सकता था।इन लोगों की लापरवाही का नतीजा है कि कई लाख लीटर पानी बहता रहा और तथाकथित जिम्मेदार हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे।
गर्मी में टैंकर्स से करनी पड़ती है जल की आपूर्ति-
 गर्मी शुरू होते ही राजधानी के तमाम इलाके हंै जहां का जलस्तर सूख जाता है। ऐसे में वहां पेय जल की भारी किल्लत हो जाती है। वहां नगर निगम के टैंकरों से पानी की आपूर्ति को बहाल किया जाता है। इसके बाद उस वक्त लोगों को यही बताया जाता है कि हम इस बार बारिश में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाएंगे। जमकर पानी बचाएंगे तो अगले साल ये समस्या ही नहीं आएगी।

महापौर ने नहीं उठाया फोन-
इस मामले पर जब राजधानी के प्रथम नागरिक से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया। इससे साफ पता चलता है कि ऐसे ही तथाकथित जिम्मेदारों की वजह से ही राजधानी की दुर्दशा हो रही है, जिसके चलते इसको देश की दूसरी सबसे गंदी राजधानी होने का गौरव हासिल है। इस बात को भी महापौर को मानना होगा कि राजधानी को गंदा बनाने में उनका और उनके एमआईसी सदस्यों का भरपूर योगदान है।
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