न दिखता है न लिखता है






वो लिखता है पर उसे दिखता ही नहीं कि उसने लिखा क्या है? जब दिखेगा ही नहीं तो वो पढ़ेगा कैसे? कुछ ऐसा ही मामला सामने आया जांजगीर-चाम्पा जिले में जहां के तमाम स्कूलों में ढाई हजार से ज्यादा बच्चों में दृष्टिदोष पाया गया। ये सारे बच्चे गरीब परिवारों के बताए जा रहे हैं। चिरायु योजना के तहत इनकी जांच की गई तो  विशेषज्ञ चिकित्सक भी सन्न रह गए। ज्यादातर बच्चों की शिकायत थी कि उनको अल्फाबेट दिखाई ही नहीं देते। ऐसे में वो भला पढ़ेंगे क्या और लिखेंगे क्या? शिक्षा की गुणवत्ता का अभियान चलाया जाना था सो चल गया। लोगों को कागजों पर आंकड़ों के घोड़े दौड़ाने थे, वो भी दौड़ा लिए गए। अब जब ये सच्चाई सामने आई है तो शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा है। जिम्मेदारों की समझ में नहीं आ रहा है कि वे करें तो क्या करें?
बच्चों में दृष्टिदोष के लिए कुपोषण  और लगातार वीडियोगेम खेलना और मोबाइल का ज्यादा उपयोग करने जैसी चीजें जिम्मेदार बताई जा रही हैं। ऐसे में यदि इनसे बच्चों को नहीं रोका गया तो परिणाम घातक हो सकते हैं। इसके साथ ही साथ बच्चों को कुपोषण से भी बचाना होगा। राज्य के अधिकांश बच्चों में कुपोषण भी पाया जाता है। इसके अलावा जब ये बच्चे मां के गर्भ में रहते हैं तो उस वक्त मां को पोषण नहीं मिल पाने और मां का दूध नहीं मिलने से ऐसी समस्याएं पैदा होती हैं। ऐसे में जरूरी है कि माताओं -बहनों को स्तनपान कराने के लिए जागरूक किया जाए।  समस्या की तह तक जाकर इसका निदान करना नितांत जरूरी है।
सरकार अगर इस अभिशाप से अपनी युवा पीढ़ी को मुक्त कराना चाहती है तो उसको बच्चों को पौष्टिक आहर के साथ ही साथ चिकित्सकीय परामर्श और दवाएं व चश्में उपलब्ध कराना होगा। इसके साथ ही साथ जिन बच्चों में मोतियाबिंद जैसी बीमारियां पाई गई हैं। उनका ऑपरेशन करवाया जाना सुनिश्चित किया  जाए। बच्चों को ज्यादा मोबाइल और वीडियोगेम खेलने से रोका जाए। तभी उनको इस अभिशाप से मुक्ति मिल सकेगी।
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