गरबा पर गर्व और सुआ से शर्म...

खटर-पटर

निखट्टू-
गुजरात से आया गरबा का कल्चर जिस कदर युवा वर्ग के जेहन में घर कर गया है। उसका नज़ारा अभी कुछ दिनों पहले नौरात्रि में देखने को मिला। पूरे शहर में जहां देखो गरबा ही गरबा। उस गरबा में जाने वालों की पोशाक तो बस माशाल्लाह थी। हमें ऐसे गरबा कार्यक्रमों पर गर्व तो है,मगर उसके पीछे जो लेनदेन का  हिसाब -किताब होता है उसको लेकर जिस तरह से लोगों को बुलाने और पैसे फूंकने का काम होता है, ये चिंता का विषय है। इसके  साथ ही साथ गरबा अब अपना प्राचीन रूप खोता जा रहा है। गरबा वो है जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ किया था। उस गरबे पर हमें गर्व है।
सुआ छत्तीसगढ़ की बेटियों के खून में रचा बसा है, मगर इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि आज भी लोगों को सुआ करने में शर्म आती है। अब दूसरे की क्या कहें हुज़ूर आज तो हमें भी शर्म उस वक्त आ गई जब पता चला कि राजधानी के कुछ खास-खास खबरनवीस एक छुटभैय्ये नेता के यहां सुआ करने गए हैं। कसम से हम तो शर्म से सिर गाड़ कर बैठ गए। उसके कुछ देर बाद खबर आई कि सभी को उस नेता ने कपड़े प्रदाय किए। अब ये लोग इस सुआ का लाभ लेने के बाद आपस में यही बात कर रहे होंगे कि देखा न, कैसे जमाया हमने रंग? और हमें दिखाई दे रहा है पत्रकारिता का बिगड़ा हुआ ढंग। ये देखकर हम तो हो गए हंै दंग।
अरे....साफ-साफ क्यों नहीं कहते कि चौखंभा वाले कुएं में पड़ गई है भंग। ऐसे में अब इनको तो भगवान ही बचाएं। वैसे भी दर्शनशास्त्र में एक बात बड़े सुस्पष्ट ढंग से कही गई है कि भयं लज्जा परित्यक्त्वा विश्व विजयी भवेत...अर्थात जो भय और लज्जा का परित्याग कर देता है वो विश्व विजयी हो जाता है। अब संभवत: ये लोग भी उसी ही श्रेणी में शामिल होने जा रहे हैं। तो अब ये लोग उस सुआ पर गर्व कर सकते हैं, मगर हमें तो इस सुआ से शर्म ही ज्याद लग रही है। हमारा तो भारी होता जा रहा है सर....इस लिए अब हम निकल लेते हैं अपने घर... तो फिर कल आपसे फिर मुलाकात होगी, तब तक के लिए जै...जै।
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