सरकार की लाचारी




राज्य सरकार के पास खाद्य निरीक्षकों की बड़ी टीम नहीं होने का फायदा मिलावटखोर और चोर उठा रहे हैं। तो वहीं दवाओं का उपयोग भी नशे के कारोबार के रूप में स्थापित हो चुका है। इसका खामियाजा कहीं युवा पीढ़ी के लोगों को तो कहीं न कहीं गरीब लोगों पर पड़ रहा है। आलम ये है कि सरगुजा जिले में अवैध टैंकर्स के माध्यम से डीजल और पेट्रोल की अवैध आपूर्ति बॉक्साइट की खदानों में चलने वाले वाहनों में की  जा रही है। अच्छा हुआ जो एक वाहन खाद्य निरीक्षकों के हत्थे चढ़ गया और तहसीलदार ने उसको मैनपाट पुलिस के  हवाले कर दिया। ऐसे तमाम वाहन इस इलाके में नियम कायदे को किनारे रखकर अवैध आपूर्ति करने में लगे हैं। तो वहीं दीपावली नजदीक आ गई है। पूरे प्रदेश में मिलावटी खोए की मिठाइयों का बनना शुरू हो चुका है। इनकी भी कोई जांच-पड़ताल नहीं होने से व्यापारियों में उत्साह का माहौल है। उनको तो पता है कि फूड इंस्पेक्टर साहब तो इधर झांकने से रहे। लिहाजा मिलाओ और कमाओ की तर्ज पर काम चल रहा है। अब जांच के नाम पर जो नाच प्रदेश में होता है उसको देखकर तो राउत नाचा वालों को भी गश आ जाए। जहां एक नामीगिरामी फर्मासूटिकल के मालिक को निर्दोष बता दिया गया? जिनके कारखाने में बड़ी मात्रा में जिंक फास्फेट नामक जहर पाया गया था। रही बात कायदे कानून की तो यहां जितने भी कायदे कानून बने हैं सब गरीबों के लिए हैं। अमीर तो आराम से पेंच खोजवाते हैं और ये काम करने के लिए हमारे यहां वकील साहब हैं न? सब मुहैय्या करवा देंगे। बस पैसे देते जाइए साहब?
सउदी अरब की सरकार ने अपने एक राजकुमार का सिर कलम करवा दिया। बाद में वहां की विधान सभा ने मीडिया को जारी रिलीज में कहा कि हमने ऐसा इसलिए किया ताकि दुनिया ये जाने कि हमारे यहां आज भी नियम कायदे सभी के लिए समान हैं।
 दुर्भाग्य की बात है कि भारत में सभी के लिए समान कानून का दावा करने वाले तो हैं, मगर कानून सभी के लिए बराबर नहीं है। अगर होता तो एंडार्सन यहां से भाग नहीं पाया होता। तमाम नेता जो देश के खजाने को अरबों का चूना लगाकर आराम फरमा रहे हैं वे सलाखों के पीछे होते। तो वहीं तमाम अपराधी जो राजनीतिक संरक्षण लेकर देश की संसद में मेजें थपथपा रहे हैं वे भी जेल में होते। अभी भी कुछ ज्यादा देर नहीं हुई है। सरकार अगर चाहती है कि देश के कायदे -कानून में आम जनता की आस्था कायम रहे तो उसको सबसे पहले डॉ. अंबेडकर के अनुवादित कानून को बिना किसी संसोधन वाले पेंच के ईमानदारी से लागू किया जाए, तभी कुछ हो पाना संभव होगा। 

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