पुतले की पीड़ा

खटर-पटर

निखट्टू

संतों.... इस बार दशहरा मैदान में मर्यादा पुरुषोत्म राम बने बच्चे ने जैसे ही रावण के पुतले की ओर धनुष घुमाया। रावण का पुतला बड़े जोर से गुर्राया.....हर साल धनुष बाण लेकर दौड़े चले आते हो, कागज के पुतले पर तीर चलाते हो? कितनी बार तुम मुझसे हारोगे अरे मारना ही है तो मार लो....और कितना मारोगे? आज जो इतनी भीड़ के सामने शेखी बघारने आए हो सीने पर हाथ रखकर बताना क्या मुझे पूरी तरह मार पाए हो?....पहले तो मैं अकेला ही लंकापुरी में बसा था। तुम्हारी सीता का हरण कर तुम्हारे पौरुष को डंसा था। आज तो तुम्हारे ही देश के गली और चौराहों पर हमारे वंशज बसते हैं आते जाते तुमको और तुम्हारी बहन -बेटियों तक को डंसते हैं। तुम्हारे ही देश के नेता आतंकियों के बनकर आ$का सरेआम डाल रहे हैं देश के कानूनी अधिकारों पर डाल रहे हंै डाका। तुम्हारे ही देश के कार्यालयों में चलता है झूठ और फलता है भ्रष्टाचार.... इन्हीं के बल पर बनती और बिगड़ती रहती है सरकार.... उसके बाद भी हमें मारने चले आए...क्या यार? अरे मारना ही है तो सबसे पहले उस ठेकेदार को मारिए जो कमीशन खिलाकर देश की व्यवस्था को बिगाड़ रहा है। गुणवत्ताहीन चीजों को लगाकर विकास का विनाश कर रहा है। उस अभियंता को मारिए जो नोटों की गड्डियों की आड़ में ऐसे घटिया निर्माण को करता है पास...यानि देश के विकास का सत्यानाश। उस सप्लायर को मारिए जो ऐसे कामों में भी कम तोलता है और उसका खाता ज्यादा बोलता है। उस नेता को मारिए जो इनमें से खींचता है अपना कमीशन और चलाता रहता है ऐसे मिशन पर मिशन। उस डॉक्टर को भी मारिए जो बेंच देता है गरीबों की दवाई, उसको भी मारना जो ड्यूटी पर रहने पर मरीजों की सेवा नहीं करती दाई। उस चपरासी को भी मारना जो घूंस के बिना नहीं देता किसी को एक गिलास पानी, उस क्लर्क को भी मारना जो सुनाता है झूठी कहानी। उस टीचर को भी मारना जो बच्चों को ठीक से नहीं पढ़ाता है, मगर तन्ख्वाह वाले दिन स्कूल आकर महीने भर की दस्त$खत एक ही बार में कर जाता है। पहले अगर दम है तो इतने रावणों को ठिकाने लगाओ उसके बाद मुझ पर धनुष उठाओ। इसके बाद उस नकली रावण का अट्टहास सुनकर राम बना युवक खामोश हो गया। अचानक वहीं मैदान में गिरकर बेहोश हो गया। विभीषण की भूमिका निभा रहे युवक ने राम की आंखों पर डाला पानी कहा अब खत्म कर दो यहीं ये कहानी। जब ये नकली पुतला तुमसे नहीं डरने वाला... तो तुम ये मान लो कि तुमसे रावण भी किसी जन्म में नहीं मरने वाला। इतना सुनते ही राम वहां से सरक लिए नीचा करके अपना सर... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर ...कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जै...जै।
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