संतों जागत नींद न कीजै



खटर-पटर



निखट्टू-
संतों.....अजब जमाना आ गया है। लोग अपना घर बचाने के लिए दूसरे के घरों पर पेट्रोल छिड़क रहे हैं। ऐसे संकटमय समय में कबिरा का लुआठी हाथ में लेकर खड़ा होना बिल्कुल विरोधाभास को बढ़ाता है। जब उन्होंने कहा था कि कबिरा खड़ा बजार में लिए लुआठी हाथ, जो फूंके घर आपना चलो हमारे साथ। मगर यहां तो लोगों को अपना घर बचाने और दूसरे का घर जलाने में बड़ा आनंद आता है। ये तथाकथित बुध्दिजीवी कबीर के भाव पक्ष पर ताव तो खाते हैं । पर कला पक्ष को ये मान कर छोड़ देते हैं कि इससे किसी का भी भला नहीं होने वाला। कबिरा ऐसे समय में भी चला ही जा रहा है। उसे तो इस बात का ङ्क्षकचित भान भी नहीं है कि वो अपनों के हाथों छला जा रहा है। अच्छा इस छलने में भी बड़ा अजीब रहस्य है। छलने वाला ये सोचकर खुश है कि हमने तो कबीर को भी नहीं छोड़ा? तो वहीं कबीर का इससे कुछ बिगडऩे वाला नहीं ऐसे में अगर कोई खुश हो लेता है तो उनकी बला से। कबीर के हरि को खोजने वाले लोग तो अब लगभग नदारद से हो गए हैं। अब न तो वे हरि हैं जो कबीर के पियु हुआ करते थे और न उस हरि की बहुरिया अर्थात संत कबीर जैसे व्यतित्व। यहां तो लोग राम की रसोई में भी राजनीति की रोटियां सुलगाने लगे हैं। मन में खोट रखने वाले वोट के लिए जबरदस्ती सरयू में नहाकर राम नाम गाने लगे हैं। ऐसे समय में जनता बिल्कुल कबीरवादी होती दिखाई दे रही है। यानि दुइ में कदे न जाय। जनता ने जब देखा कि उसका काम किसी भी हालत में नहीं बनता तो उसने भी कबीर होने का सपना अपना लिया। ये दीगर बात है कि मोटी कीमत देकर खरीदे गए कुछ चपल चित्त वाले लोग, नेताओं का जोग भिड़ाने ले लगे हैं। इससे पहले भी कई लोगों के भाग इन्हीं की वजह से जगे हैं, लेकिन जनता का ये कबीरवाद इनके लिए भयानक दाद बनेगा। इसीलिए तो हम कहते हैं न कि संतों....जागत नींद न कीजै। तो समझ गए न सर....अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर...कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जै...जै।

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