बच्चों में दृष्टिदोष शिक्षा विभाग खामोश
- जांजगीर चाम्पा में ढाई हजार से ज्यादा बच्चों को दृष्टिदोष है। इसके बावजूद भी शिक्षा विभाग खामोश है। ऐसे बच्चों को ठीक से वर्णों और अक्षरों तक को पहचानने में खासी परेशानी होती है। एक ओर जहां स्कूलों और आंगनबाडिय़ों में सर्वे हो रहा है तो वहीं विशेषज्ञों की कमी के चलते इन बच्चों को उतनी राहत नहीं मिल पा रही है जितनी कि मिलनी चाहिए। ऐसे में सवाल तो यही है कि क्या ऐसे ही शिक्षा की गुणवत्ता में ईजाफा होगा?
चिरायु योजना के तहत चलाया जा रहा अभियान, गिरती शिक्षा व्यवस्था का अहम कारण
जांजगीर चाम्पा।
जिले में स्कूल में पढऩे वाले बच्चे नेत्र रोग की समस्या से जूझ रहे हैं। जिले में पढ़ाई करने वाले बच्चों में नेत्र रोग की समस्या बढऩे लगी है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाए जा रहे चिरायु योजनान्तर्गत प्राइवेट व शासकीय स्कूली बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण कर उपचार किया जाना है।
इसके लिए विभाग द्वारा मितानिन व स्वास्थ्य विभाग की टीम के माध्यम से जिले में संचालित स्कूली बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण कर पीडि़त छात्र-छात्राओं को चिन्हांकित किया जा रहा है। चिन्हांकित बच्चों के रोग से संबंधित जानकारी लेते हुए दवाईयों का वितरण किया जा रहा है।
क्या कहते हैं विभागी आंकड़े-
विभागीय आंकड़ों के अनुसार अगस्त 2015 से सितम्बर 2016 तक 2 हजार 504 दृष्टि दोष पीडि़त छात्र-छात्राओं की पहचान की गई। इनमें छात्रों की संख्या 1567 और छात्राओं की संख्या 937 है। इन बच्चों में दूर दृष्टिदोष, निकट दृष्टिदोष, रतौंधी रोग के लक्षण मिले हैं। ज्यादातर बच्चे दृष्टिदोष से ही प्रभावित हैं। ऐसे में स्कूली बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
जिले में स्वास्थ्य विभाग द्वारा चालू वर्ष 2015-16 में चिरायु योजनान्तर्गत 2 हजार 177 आंगनबाडी व 2 हजार 628 स्कूलों का निरीक्षण किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके तहत आंगनबाड़ी केन्द्रों में 6 माह से 6 वर्ष तक की आयु के 1 लाख 67 हजार 235 बच्चों की जांच कर परीक्षण किया जाना है। इनमें 78 हजार 484 बालक व 88 हजार 751 बालिका का परीक्षण किया जाना है।
इसी तरह स्कूल में पढऩे वाले 6 वर्ष से 18 वर्ष की उम्र के 2 लाख 94 हजार 877 स्कूली बच्चों की स्वास्थ्य संबंधी जांच की जानी है। इनमें 1 लाख 47 हजार 383 बालक व 1 लाख 47 हजार 494 बच्चों की स्वास्थ्य संबंधी जांच की जानी है। लेकिन विभाग द्वारा चिरायु योजना का आधा लक्ष्य तय नहीं किया जा सका है।
विशेषज्ञों का भी अभाव-
जिले के कई शासकीय अस्पतालों में नेत्र विशेषज्ञ का अभाव है ऐसे में स्कूलों में पढऩे वाले 2 हजार 504 बच्चों का उपचार नियमित नहीं किया जा रहा है। इस संबंध में डीपीएम गिरिश कुर्रे का कहना है कि जांच के दौरान जिन बच्चों की आंखों में दोष पाया जाता है उन्हें उपचार के लिए अस्पताल रिफर किया जाता है। अस्पताल में ऐसे बच्चों की जांच होती है।
टीवी, मोबाइल व विडियो गेम घातक-
स्कूली बच्चों का टीवी, कार्टून व वीडियो गेम से मोह नहीं छूट रहा है। स्कूली बच्चे समय मिलते ही टीवी में चल रहे कार्टून सहित वीडियो गेम में घंटो डटे रहते हैं। ऐसे में टीवी व मोबाइल से निकलने वाली अल्ट्रावाइलेट किरणे सीधे आंखों को प्रभावित करती हंै। जिससे बच्चों की आंखों पर गलत प्रभाव पड़ता है। वहीं बच्चों को भोजन में पौष्टिक तत्व भरपूर नहीं मिलने से भी आंखों से संबंधित बीमारी होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों में नेत्रदोष का मुख्य कारण टीवी, मोबाइल, कम्प्यूटर व लैपटाप है। बच्चों को पर्याप्त दूरी से टीवी देखना चाहिए, लंबे समय तक कम्प्यूटर या मोबाइल का उपयोग नहीं करना चाहिए।
कैसे खुली पोल-
शिक्षा गुणवत्ता अभियान के तहत अधिकारी स्कूलों का निरीक्षण करने जा रहे हैं, साथ ही वहां क्लास भी ले रहे हैं। उन्हें तो शिक्षा के स्तर का पता चल ही रहा है, साथ ही स्कूली बच्चों का नेत्र परीक्षण करने पहुंचे नेत्र सहायकों को भी स्कूली बच्चों के शिक्षा का स्तर नेत्र जांच के दौरान आसानी से चल जा रहा है। दरअसल नेत्र जांच के दौरान मिडिल स्कूल के बच्चों को जब अंग्रेजी का अल्फाबेट दिखाया जा रहा है, तो कई स्कूलों के बच्चे अंग्रेजी के अक्षरों की पहचान तक नहीं कर पा रहे हैं। एक नेत्र सहायक ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि मिडिल स्कूल के कई बच्चों को अंग्रेजी की एबीसीडी नहीं आती। ऐसे में उनकी आंखों की जांच के लिए हिन्दी वर्णमाला का प्रयोग किया जाता है। इस तरह नेत्र जांच के दौरान बच्चों के अक्षर ज्ञान की पोल भी खुल रही है।
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