खबरों की आड़ में ये खिलवाड़ क्यों-



जोश में होश खोती मीडिया-
लगातार सनसनी परोसने के चक्कर में दृश्य माध्यम के पत्रकारों ने पत्रकारिता के तमाम नियम-कायदे की बखिया उधेड़ डाली। उनको तो बस सनसनी बटोरना है और खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करना है। देश की सुरक्षा के लिए खतरा बनता हो तो बने, उनकी बला से? उनका भला इससे क्या सरोकार उनको तो चाहिए बस एक सनसनीखेज समाचार। बस इसी की आड़ में जोश में आई मीडिया होश खोती जा रही है। जाने-अनजाने ये लोग वो काम भी करते जा रहे हैं जिससे देश की सुरक्षा की पोल-पट्टी हमारे दुश्मन के जासूसों तक को आराम से मिलती जा रही है। इनकी इन्हीं बचकानी हरकतों की वजह से हमारे जवानों की राह में मुश्किलें पैदा हो रही हैं। उदाहरण चाहे पंपोर की ताजा मुठभेड़ का ले लें या फिर मुंबई के ताज होटल का। दोनों ही जगहों पर लाइव टेलीकॉस्टिंग की वजह से समस्या पैदा हुई थी। तो उन घटनाओं से बिना कोई सीख लिए अब मीडिया की तमाम टीमें देश की सीमाओं की लाइव टेलीकॉस्टिंग कर सनसनी बटोर रही हैं। इनकी इसी लापरवाही के चलते आतंकियों के आ$काओं को किसी न किसी वारदात को अंजाम देने के महत्वपूर्ण क्लू मिलते जा रहे हैं। सवाल तो ये है कि आखिर हम जोश में होश क्यों खोते जा रहे हैं? मीडिया के हालात ऐसे क्यों होते जा रहे हैं?

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 रायपुर।
सर्जिकल स्ट्राइक क्या हो गई, दृश्य पत्रकारिता ने सरोकारों के सारे बंधन एक झटके में तोड़ डाले। सेना की बुलेट प्रूफ जैकेट पहन कर पत्रकार सीमा पर जाकर रिपोर्टिंग करने लगे। इनकी इस बचकानी हरकत का क्या प्रभाव दुश्मन की रणनीति पर पड़ेगा इसको जाने बिना संवेदनशील सीमाओं पर भी कैमरा लिए जमे पड़े हैं। कोई कच्छ के रण में चढ़ बैठा है तो कोई  कसूर और श्रीगंगानगर और जैसलमेर के मरुस्थलों में। इनका वश चले तो ये क्या -क्या न दिखा डालें? हमारे जवान कैसे कांबिंग कर रहे हैं क्या खा रहे हैं कहां -कहां उनके ठौर-ठिकाने हैं? कौन-कौन से हथियार हैं? कहां कैसे नज़ारे हैं? यानि सपाट भाषा में कहा जाए कि जो काम पाकिस्तानी जासूसों को करना चाहिए था उसको हमारी मीडिया के लोग ही करके पाकिस्तान के जासूसों और रणनीतिकारों को थमाए बैठे हैं। सवाल तो ये है कि सनसनी बटोरने के नाम पर ये अकुशल पत्रकार अपने बचकाने ज्ञान के चलते देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए आखिर खतरा क्यों उत्पन्न करना चाहते हैं? देश ने इनका क्या बिगाड़ा है?
नेता सुबूत मांग रहे हैं और  मीडिया सुबूत दे रही है-
देश की विडम्बना है कि एक ओर हमारी सेनाओं के जवानों ने सीमा के पार जाकर अपनी जान की बाजी लगाकर एक बड़े सर्जिकल अटैक को अंजाम दिया। इन जांबाजों ने पाकिस्तानी आतंकवादियों की रीढ़ की हड्डी तोड़कर रख दी। सेना की इस कार्रवाई से जहां एक ओर पूरा पाकिस्तान बौराया हुआ है, तो हमारे नेता इसका सुबूत मांगने में लगे हैं? तरस आता है इनकी बचकानी बुध्दि पर। कोई सुबूत सार्वजनिक करने की मांग कर रहा है, तो कोई देश के प्रधानमंत्री को खून का दलाल बताने पर तुला है। किसी भी देश में रहने की पहली शर्त होनी चाहिए देशभक्ति? जो हमारे इन नेताओं में कितनी बची है ये उनकी बातों से ही समझ में आ जाती है। इस आग में हमारी मीडिया के मित्र भी घी का काम कर रहे हैं। पूरे-पूरे दिन की बैठक चर्चाओं पर चर्चाएं किए पड़े हैं। तो वहीं कुछ विश्व विद्यालयों से रंगीन डिग्रीधारी पत्रकारों ने कैमरे संभाले और निकल गए देश की सीमाओं का हाल विदेशियों को बताने कि साहब भारत में अगर घुसना हो तो यहां से ऐसे घुसें। यहां -यहां खाली रहती हैं हमारी सीमाएं। आपलोग आराम से आ सकते हैं। ऐसा काम तो कोई बच्चा भी करने को तैयार नहीं होगा? इनका ये कृत्य किसी बच्चे से भी गया बीता है।
ताज होटल के हमले को भी भुला बैठी मीडिया-
मुंबई के ताज होटल में जब हमला हुआ था तो उसमें यही समस्या सामने आई थी। हमारे देश के कुछ चैनलों के संवाददाताओं ने सनसनी बटोरने के लिए यहां से लाइव टेलीकास्ट करना शुरू कर दिया था। तो पाकिस्तान में बैठे उन आतंकियों के आ$काओं ने उसी से क्लू निकाल कर आतंकियों को दिए जिससे उन लोगों ने हमारे कमांडोज के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं। ये दीगर बात है कि बाद में मार्कोस कमांडोज ने इस खेल को खत्म किया। इसके बाद एक बार कहा गया कि ऐसे किसी भी हमले का मीडिया लाइव कवरेज नहीं करेगी।
समाचार और उसका सरोकार-
समाचार दिखाना मीडिया की महती जिम्मेदारी है। तो वहीं पत्रकार को ये भी समझ होनी चाहिए कि इस समाचार का सरोकार  क्या है? जब तक उसका सरोकार ही नहीं समझ में आएगा? तो उस समाचार को दिखाने से फायदा? नई पीढ़ी के संवाददाताओं का इससे कोई लेना देना नहीं है। इनको तो बस सनसनी मिलनी चाहिए वो भी किसी भी कीमत पर। ऐसे में कभी-कभी इनकी यही सनसनी देश के लिए एक विशाल समस्या बनकर खड़ी हो जाती है। पंपोर की लंबी चली मुठभेड़ के पीछे भी कहीं न कहीं यही कारण सामने आता है। वहां भी मीडिया लगातार लाइव टेलीकास्ट करती रही और आतंकियों को काबू में करने के लिए हमारे सेना के जवानों को पसीना बहाना पड़ा।
देश की सुरक्षा के साथ न हो ऐसा मजाक-
खबरों को आम जनता तक पहुंचाना मीडिया की महती जिम्मेदारी है। इसके लिए एक पत्रकार को कठोर परिश्रम करना पड़ता है, मगर हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम उन खबरों को सार्वजनिक करने से पूरी तरह से परहेज करें जिनका सरोकार हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा से है। कहीं ऐसा न हो कि खबर दिखाने के चक्कर में ये खबर आ जाए कि हमारी ही खबर देखकर दुश्मन ने हमारी चार चौकियां हथिया लीं? इसलिए कोशिश यही होनी चाहिए कि समाचारों को दिखाने के पहले उनके सरोकारों पर एक बार गंभीरता से सोच लिया जाए तो ज्यादा श्रेयस्कर होगा।

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