आदत की दवाई
सरकार सुशासन के कितने ही दावे कर ले मगर अधिकारी कर्मचारी अपने रवैये से बाज आने वाले नहीं हैं। इनकी आदत पड़ चुकी है हादसे के बाद जागने और भागने की। जब तक कोई बड़ा हादसा पेश नहीं आता तब तक किसी की भी तंद्रा नहीं टूटती। वेतनमान चाहे पच्चीसवां दे दीजिए मगर आदत- आदत होती है, उसकी कोई दवाई किसी के पास नहीं मिलती। वैसे भी जानकारों का मानना है कि छत्तीसगढ़ को अफसरशाही ही चला रही है। उनकी जो भी मर्जी होती है वही होता है। इसका नज़ारा भी गरियाबंद में देखने को मिला जब वहां की कलेक्टर एक नेता की फटकार से इतनी नाराज हुईं कि बीच में ही शिविर की समाप्ति की घोषणा कर चलती बनीं। हां राज्य को एक और तबका चला रहा है। वो है उद्योगपतियों का अब अंबिकापुर में अदानी की खदान का पानी वहां की नदी में चुपचाप घुल रहा है और कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। कार्रवाई तो बहुत दूर की बात है। इसका खामियाजा वहां के उन ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है जो उस नदी के किनारे बसे हैं। उनके जानवरों को न तो पीने का पानी मिल पा रहा है। और न ही उस काले पानी का उपयोग ग्रमीण निस्तारी के लिए कर पा रहे हैं। अदानी कौन हैं ये बात लगभग पूरा देश जानता है। किसी को भी बताने की आवश्यकता नहीं है। तो वहीं राज्य में भाजपा की सरकार भी है। ऐसे में अब किस अधिकारी के मुंह में चालीस दांत हैं जो उनसे पंगा लेगा? इसका भी तरीका खदान के जानकारों ने निकाल लिया है। अब खबर है कि कुछ लोग दिन भर पानी पीटने की मजदूरी ले रहे हैं। उनका काम ये है कि उस काले पानी को डंडे से पीट-पीटकर मटमैला बनाना। ऐसे में सवाल तो ये भी उठता है कि क्या ऐसा करने से उस पानी की गुणवत्ता में कोई सुधार आएगा? ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो सकता। हां उसमें धूल मिलाकर खदान प्रबंधन के लोग खुद का पर्यावरण विभाग की कार्रवाई से बचाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। तो वहीं तमाम दूसरे अधिकारी कार्रवाई से बचते नज़र आ रहे हैं। आखिर सवाल अदानी का है तो ऐसे में भला कौन जाए किंग कोबरा के दांत गिनने? उम्मीद की जानी चाहिए कि जिम्मेदार अधिकारी इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई कर प्रदेश में कानून व्यवस्था के जीवित होने का प्रमाण देंगे। इससे आम अवाम की निष्ठा शासन और प्रशासन में कायम हो सके।
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