मुंगेली के कुम्हारों की खुशियों को रौंदती मिट्टी



 माटी कहे कुम्हार से तू क्यों रौंदे मोहि, एक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदूंगी तोहि। मुंगेली के कुम्हारों की जिंदगी पर ये बात बखूबी फिट बैठती है। जिनकी खुशियों को इसी मिट्टी ने मिट्टी में मिला दिया। पहले कभी जो दीए बनाकर दो पैसे कमाई कर लिया करते थे आज वही पैसे-पैसे के मोहताज़ हैं। इसका सीधा सा कारण है कि लोग अब मिट्टी के दीए नहीं खरीदते, तो वहीं इनको दिए बनाने के लिए मिट्टी भी नहीं मिल रही है। इसके अलावा इनको सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल रहा है।ऐसे में सवाल तो यही है कि क्या हम इन कुम्हारों को  इस सितम से निज़ात दिलवा पाएंगे ? आखिर कौन दूर करेगा इन दीया बनाने वालों की जिंदगी में छाया अंधेरा?
 आखिर कौन दूर करेगा दीया बनाने वालों की जिंदगी में छाया अंधेरा


 मुंगेली । जिले में कुम्हार परेशान हैं, इसकी वजह मिट्टी के दीयों की बिक्री का कम होना है।  सरकारी अफसर तक मिट्टी के दीयों का इस्तेमाल करने की अपील कर रहे हैं लेकिन बिक्री में ईजाफा नहीं हो रहा।
मंगेली के कुम्हारों को इन दिनों जीवन यापन में भारी परेशानियों का सामना करना पड रहा है।  दीपावली पर घरों दीयों की रोशनी से जगमगाने की परंपरा रही है, लेकिन आधुनिकता का असर इस पर भी देखने को मिल रहा है।  पहले जहां लोग सौ-सौ मिट्टी के दीये लेते थे, वो अब महज औपचारिकता पूरी करने के लिए 10-12 ही दीये लेते हैं।
नहीं मिला सरकारी योजनाओं का लाभ-
कुम्हार का परिवार दीपावली के त्यौहार पर मेहनत करके दीये व मां लक्ष्मी की मूर्तियां बनाते हैं, जिसके लिए इन्हें मिट्टी तक नहीं मिलती।  जिले के सैकडों कुम्हार परिवार हैं, जिन्हें आज तक सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाला बिजली से चलने वाला चाक नही वितरित किया गया है।
मिट्टी के दियों के कम होते चलन को देखते हुए जिले के कलेक्टर किरण कौशल ने लोगों से चाइना झालरों के उपयोग की जगह मिट्टी के दीये जलाने की अपील की है, जिससे इन कुम्हार परिवार के परंपरागत रोजगार के जरिए जीवन यापन में मदद हो सकें।
-------------------------------------------------------------------------------


Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव