जैसे को तैसा

खटर-पटर

निखट्टू
एक बार प्रयाग के कुंभ मेले में तमाम साधुओं का स्नान चल रहा था। बड़ी संख्या में साधु त्रिवेणी में स्नान कर रहे थे। अचानक एक साधु की नज़र बीच नदी में पड़ी देखा एक बिच्छू डूब रहा है। साधु का दयालु हृदय पसीज़ उठा। उन्होंने अपनी परवाह न करते हुए नदी की धारा में जाकर उस बिच्छू को उठाना चाहा पर ये क्या बिच्छू ने तो उनको जोर का डंक मार दिया? साधु ने दोबारा उस बिच्छू को हाथ से उठाया तो उसने फिर उनको डंक मार दिया। इसके बाद उसको उन्होंने कसकर पकड़ लिया। तो वो उनके हाथ में काटने लगा। अपनी पीड़ा की परवाह न करते हुए साधु ने उस बिच्छू को गंगा के किनारे रेत पर लाकर सुरक्षित छोड़ दिया। इसके बाद साधु ने अपने प्राण त्याग दिए। अब ये देखकर बिच्छू का मन बढ़ गया उसको लगा कि अब मैं ही सबसे बलवान हूं। वहां से अपने बल पर इतराता हुआ आगे बढ़ा तो उसका सामना एक मार्कोस कमांडो से हो गया। मार्कोस कमांडो एक बड़े नेता की सुरक्षा में तैनात था। बिच्छू पूरे जोश में उसकी वर्दी पर चढऩा चाहा मगर यहां तो मार्कोस  कमांडो उसका भी बाप निकला। उसको ऐसा पकड़ा कि उसका डंक टूटकर काफी दूर जा गिरा। उसके बाद बिच्छू अपनी दोनों कांटेदार भुजाएं फैलाकर उसको काटने की कोशिश की तो उसके दोनों हाथ पलक झपकते ही अलग हो गए। ये देखकर वहां बैठे एक विद्वान प्रवचनकर्ता ने व्यास पीठ अपने प्रवचन में कहा कि दुष्ट के साथ दुष्टता करनी ही चाहिए। अब ऐसा ही एक बिच्छू हमारे पड़ोस में रहता है। वो भी लगातार काफी दिनों से हमारे लोगों और सेनाओं को तंग किए हुए है। जब तब डंक मारता रहता है। अचानक उसका भी सबका एक दिन सील कमांडो से पड़ गया। परिणाम उसके आतंक वाले डंक को तोड़कर गहरे समुद्र में गाड़ दिया गया। इस बार भी उसी की सबसे बड़ी महापंचायत की निगाह इसके ऊपर पड़ी है।  तो अब परिणाम क्या होगा ये तो आने वाला समय बताएगा मगर इनके चंगू-मंगू की हालत खराब होने लगी है। तो समझ गए न सर.....अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर... तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जय...जय।
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