निगम का गम बढ़ाते अफसर





नगर पालिक निगम का $गम उसके अफसर  ही बढ़ाने में लगे हैं। आलम ये है कि सारा काम रुका पड़ा है। एनजीटी की फटकार का भी इनके ऊपर दूर-दूर तक कोई असर होता नहीं दिखाई दे रहा है। तो वहीं अफसरशाही  का रुआब तो एडोल्फ हिटलर को भी शर्मिंदा करने वाली है। अग्रिशमन दस्ते के तमाम जवानों सहित तमाम अधिकारी इसकी शिकायत करते नहीं थकते हैं। एक तरह रायपुर देश का दूसरा सबसे गंदा और छठां सबसे प्रदूषित शहर होने का तम$गा हासिल कर चुका है। इसके बावजूद भी पता नहीं क्यों ऐसे अधिकारी यहां ढोए जा रहे हैं? इनकी गलतियों का नुुकसान महापौर को उठाना पड़ रहा है। यानि करे कोई भरे कोई वाली बात चरितार्थ होती दिखाई दे रही है। निगम के अधिकारियों की नक्कारापंथी का सबसे बड़ा सुबूत खुद रायपुर नगर पालिक निगम ही है। यहां की बिल्डिंग में कोई फायर फाइटिंग सिस्टम नहीं है। ऐसे में सवाल तो यही है कि अगर कभी आग लगी तो उसे जो नुकसान होगा उसका जिम्मेदार कौन होगा? यहां योजनाएं बनती हैं पैसा आता है और खर्च हो जाता है। काम जहां था वहीं पड़ा रहता है। नगर की जनता टैक्स देकर सुविधाओं का उपभोग कायदे से नहीं कर पा रही है। उसको न तो स्वच्छ पानी मिल रहा है। न ही अच्छी सड़कें और न ही स्वास्थ्य के लिए दवाओं की कोई मुफीद व्यवस्था। नगर निगम के अधिकारी टैक्स लेकर रिलैक्स कर रहे हैं।
ऐसे में राजधानी के हर जागरूक करदाता का ये फर्ज बनता है कि वो उपभोक्ता अदालत में इनके खिलाफ मामला दायर करे, कि उसको टैक्स का भुगतान करने के बाद उसे मूलभूत सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। ऐसे में नगर पालिक निगम रायपुर उसको होने वाले नुकसान की भरपाई करे। इसके बाद ही इन लोगों से किसी सुधार की उम्मीद की जा सकती है।

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