ये कौन सा पन है विज्ञापन


खटर-पटर-

निखट्टू-
संतों.....अजब जमाना आ गया है। कम्बख्त बिना विज्ञापन के कुछ नहीं हो रहा है। खाने-पहनने से लेकर शौचालय तक के विज्ञापन देखने को मिल रहे हैं। हमारे नाती शिवांग हमसे एक दिन बड़ा उल्टा सवाल पूछ गए। नानाजी....नानाजी ये विज्ञापन कौन सा पन है? हमारी दादी तो बता रही थीं कि बचपन, युवा और बुढ़ापा यही तीन पन होते हैं। मैं भी उस बच्चे के सवाल पर एकबारगी विचार करने को विवश हो गया। क्योंकि हमारे जीवन में विज्ञापन चारों ओर भरा पड़ा है। उपभोक्ता दिग्भ्रमित होकर खड़ा है। उसकी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर वो खरीदे तो क्या खरीदे? एक से बढ़कर एक दावे किए जा रहे हैं। बड़े-बड़े दिखावे-और विज्ञापन करने वालों को मोटे-मोटे चढ़ावे दिए जा रहे हैं। कभी गंगा ने अपना विज्ञापन देकर बताया क्या कि हमारा जल अमृत है? कभी गाय और भैंस ने विज्ञापन दिया क्या कि हमारा दूध अमृत है? पर ये बात पूरी दुनिया जानती और मानती है। जन्म लेते बच्चे को किसने सिखाया कि वो अपनी मां की छाती से चिपक कर उसका दूध पीता है? खेत कौन सा विज्ञापन देने गया था कि गेहूं की रोटियां खाने से सभी की भूख मिटती है? कुआं कौन सा विज्ञापन देने गया था कि हमारा पानी पीने से प्यास खत्म हो जाती है? किस मां ने विज्ञापन दिया था कि वो अपने सभी बच्चों को समान प्यार-दुलार और स्नेह देती है? ये सब प्रकृति ने हमें बिना मूल्य के नि:शुल्क दिया है। अलबत्ता अब हमारी सरकार इन पर भी पैसे वसूल रही है। तो वहीं दुनिया के कुछ देश तो अब सांसों यानि ऑक्सीजन का भी व्यवसाय करने लगे हैं। भारत में पीने वाले पानी की बिक्री तो पता नहीं कब से की जा रही है।
 विज्ञापनों में जो दिखाया जा रहा है उसके पीछे होने वाले नुकसानों को उससे ज्यादा छिपाया जा रहा है। यही कारण है कि इस बात को समझने वाले जेम्स बांड के किरदार निभाने वाले हॉलीवुड़ के महानायक पहले तो एक पान मसाले का विज्ञापन किया, उसके बाद उनको जैसे ही पता चला कि इस पान मसाले की वजह से ही लोगों को कैंसर होता है सर.....तो अपना सिर पीट लिए कि हे भगवान  हमने ये क्या किया? उन्होंने तत्काल लोगों से माफी मांग ली। वैसे भी हमारे यहां एक कहावत चलती है कि पैसा गुरू और सब चेला। यानि पैसा कुछ भी करवा ले? वही इस महानायक के साथ भी हुआ मगर वो भी अच्छे कलाकार के साथ ही साथ एक बेहद अच्छे इंसान निकले लिहाजा उन्होंने उस कंपनी से स्पष्टीकरण मांगा है। यानि बचपन से लेकर पचपन तक विज्ञापन ही विज्ञापन क्यों? समझ गए न सर.... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जै...जै।

Comments

Popular posts from this blog

पुनर्मूषको भव

कलियुगी कपूत का असली रंग

बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव