नहले पे दहला

खटर-पटर-

निखट्टू-
संतों.... एक गांव में रहने वाले गरीब के बेटे ने मुंबई की राह पकड़ी। वहां जमकर व्यापार किया और खूब पैसे कमाए। इस दौरान वो अपने गांव से कटा रहा। कभी अपनी मां तक को देखने नहीं आया। वो मां जो कभी अपने हिस्से का निवाला उसको खिलाकर सुला देती थी, और खुद पानी पीकर सो जाया करती थी। बार-बार बुलाने पर भी वो ज़ालिम बेटा घर नहीं आया और उसकी मां उसके लिए तड़प-तड़प कर मर गई। इसके बाद जब उसे ये खबर मिली कि तुम्हारी मां मर गई।  तो वो अपनी मां का क्रिया कर्म करने गांव आया। पहले तो उसको गांव वालों की झिड़कियां और डांट सुनने को मिली। उसके बाद फिर गांव के बड़े बुजुर्गों से उसने सलाह मश्विरा किया। गांव वाले भी जानते थे कि ये घमंडी  पैसों वाला है। लिहाजा  उन्होंने कहा कि कायदे से ब्रह्म भोज करवाओ और दान पुण्य करो। वही तुम्हारी मां को वहां स्वर्ग में मिलेगा। पैसों की कमीं तो उसके पास थी ही नहीं लिहाजा उसने अपनी मां का श्राध्द बड़े ही सुंदर ढंग से करवाया। पैसे के गुरूर में अंधे उस आदमी ने अपनी मां की एक सोने की मूर्ति बनवाई। पंडित से उसका पूजन करवाया और जब पंडित जी जाने लगे तो उस मूर्ति को पंडित जी को थमा दिया। इसके बाद बड़े ही घमंड से बोला पंडित जी  ये बताओ कि आपके इस पूरे प्रदेश में मेरे बराबर का कोई यजमान मिला आपको? पंडित ने नहीं में सिर हिला दिया। उसकी छाती गर्व से और चौड़ी हो गई। इसके बाद पंडित ने जेब से एक सौ एक रुपए निकाला और उस मूर्ति के ऊपर रखकर उनको बुलाया और वापस पकड़ा दिया। इसके बाद पंडित जी बोले आपके जैसा यजमान हमारे पूरे प्रदेश में नहीं है, मगर मेरे जैसा पंडित भी पूरे प्रदेश में नहीं मिलेगा आपको। आप इसको ससम्मान रख लीजिए  और किसी दूसरे पंडित को बुलाकर दान कर दीजिएगा। मैं ऐसे लोभी आदमी को यजमान नहीं बना सकता हूं। पंडित के व्यवहार से सेठ जी के तो लगा हाथ से तोते ही उड़ गए । वे मंच पर ठगे से खड़े रहे और पंडित जी तीर की तरह भीड़ के बीच से निकले और लापता हो गए। क्यों समझ गए न सर.... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जै.....जै..।

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