नए-नए धान





प्रदेश के इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय ने राज्य के गरीबों और कुपोषितों की जान बचाने के लिए एक नए किस्म का धान विकसित किया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इसमें 10 प्रतिशत प्रोटीन और 30 पीपीएम जिंक की मात्रा पाई जाएगी। प्रदेश में 17 प्रतिशत बच्चे कुपोषित बताए जा रहे हैं। ऐसे में अगर इसका उत्पादन यदि राज्य में शुरू हो जाता है तो इससे कुपोषित बच्चों की न सिर्फ जान बच सकेगी, बल्कि उनको मानसिक कमजोरी, आंखों की कमजोर रोशनी जैसी तमाम समस्याओं से निजात मिल सकेगी। तो वहीं अबूझमाड़ और सूरजपुर जैसे इलाकों में रहने वाले आदिवासियों का प्रमुख पोषाहर बन सकेगा। सरकार का पोषाहार तो सही सलामत गरीब आदिवासियों तक नहीं पहुंच पा रहा है। यदि ये चावल गरीबों के कुपोषित बच्चों तक पहुंचाया जा सका तो नि:संदेह राज्य में कुपोषण के अनुपात में जोरदार गिरावट आएगी। यानि कुपोषण से होने वाली लड़ाई में ये हमारे लिए एक कारगर हथियार साबित होगा। विश्व विद्यालय के जिम्मेदार सूत्रों का मानना है कि यदि सबकुछ ठीकठाक रहा तो अगले साल ही हम इसका उत्पादन भी शुरू कर देंगे। यानि किसानों को इस धान की ये नई किस्म लगाने के लिए अगले साल मिलनी शुरू हो जाएगी। इंदिरागांधी विश्व विद्यालय एशिया महाद्वीप का वो विश्व विद्यालय है जहां ढाई हजार से ज्यादा किस्म के धान के जर्मोप्लाज्म रखे हुए हैं। इस विश्व विद्यालय की खासियत भी यही रही है कि इसने प्रदेश को तमाम नई किस्मों के धान, नारियल, काजू और भी न जाने कितने तरह की चीजें विकसित कर के दी है। इनका धान के विकास में विशेष योगदान माना जाता है। आने वाले दिनों में सुगर और गठिया के रोगियों के लिए भी धान की किस्में तैयार की जा रही हैं। ये नए धान भी जल्दी ही किसानों के खेतों में लहलहाते मिलेंगे इसमें कोई दो राय नहीं है।

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