ये नया धान बचाएगा जान...!


चौंकिए मत श्रीमान... ये नया धान बचाएगा जान...! क्योंकि इसमें 10 फीसदी प्रोटीन और 30 पीपीएम जिंक पाया गया है। ऐसे में राज्य के बच्चों की कुपोषण से लड़ाई में हमारे लिए ये एक नया हथियार साबित होगा। इसको विकसित करने  वाले इंदिरागांधी कृषि विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर सबकुछ ठीकठाक रहा तो अगले साल इसका उत्पादन भी शुरू कर दिया जाएगा।

इंदिरागांधी कृषि विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों का नया कारनामा, जल्दी ही शुरू हो जाएगी इसकी खेती
रायपुर।   

कुपोषण से लडऩे का हथियार बनेगा ये धान-
विश्वविद्यालय में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्राध्यापक डॉ. गिरीश चंदेल ने बताया कि विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने सात साल की कड़ी मेहनत के बाद चावल की एक ऐसी किस्म को विकसित किया है जिसमें अन्य किस्मों के मुकाबले ज्यादा प्रोटीन और जस्ता है।  जो राज्य में कुपोषण से लडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
5 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार-
 डॉ.  चंदेल ने बताया कि राज्य के जनजातीय समुदाय के बच्चों में कुपोषण का दर अधिक है।  एक सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य के आदिवासी इलाकों के पांच लाख बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।   राज्य सरकार इस समस्या से लडऩे के लिए लगातार प्रयास कर रही है, और राज्य में पौष्टिक भोजन सप्ताह समेत कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।  लेकिन कुपोषण की इस समस्या से लडऩे के लिए अन्य प्रयास भी किए जाने की आवश्कता है।
उन्होंने बताया कि राज्य के महिला एवं बाल विकास विभाग से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2005-06 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (वजन आधारित) में राज्य में कुपोषण की दर 47.1 फीसदी थी जो अब 29.8 फीसदी रह गई है।
डॉ. चंदेल ने बताया कि धान का कटोरा के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ की मुख्य फसल धान ही है।  यहां के लोगों का मुख्य भोजन चावल है। ऐसे में चावल में ही पोषक तत्वों को बढ़ाने को लेकर प्रयास किया गया तथा इसमें प्रोटीन और जस्ता की मात्रा बढ़ाई गई।  चावल की यह नई किस्म ऐसे लोगों के लिए फायदेमंद हो सकती जो प्रोटीन के लिए मांस और दाल नहीं खा सकते हैं।
10 फीसदी प्रोटीन और 30 पीपीएम जिंक-
 आतमौर पर चावल में मुख्यरूप से काबरेहाइड्रेट पाया जाता है।  अनुसंधान के दौरान इस बात पर बल दिया गया कि चावल में बेहतर प्रोटीन और जिंक भी हो जिससे इससे खाने वाले लोगों को पोषक तत्व मिल सके।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार चावल की नई किस्म में 10 फीसदी प्रोटीन है जो चावल की किसी भी अच्छी किस्म से तीन फीसदी ज्यादा है।  वहीं इसमें जिंक की मात्रा 30 पीपीएम है।  यह किस्म राज्य में कुपोषण की समस्या से निपटने में महत्वपूर्ण साबित होगी।
अगले साल से शुरू होगी खेती-
कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि चावल की इस नई किस्म को अगले छह महीने के भीतर राज्य के वेराइटी आईडेंटीफिकेशन कमेटी के पास भेजा जाएगा तथा अगले वर्ष तक इस धान की खेती की जा सकेगी।
क्या कहती हैं विशेषज्ञ अरूणा पल्टा-
कृषि विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के प्रयासों की सराहना करते हुए पोषण विशेषज्ञ अरूणा पल्टा ने कहा कि वैज्ञानिकों को चावल के साथ ही अन्य फसलों में भी प्रोटीन की गुणवत्ता में सुधार के प्रयास करना चाहिए।  जिससे यह फसल बड़े पैमाने पर बाजार में आए और प्रोटीन की कमी से जूझ रहे अधिसंख्य आबादी को भरपूर मात्रा में पोषक तत्व मिल सके।
पल्टा ने कहा कि जिस तरह चावल में प्रोटीन के स्तर को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है इसी तरह अन्य फसलों जो भारतीय भोजन के मुख्य घटक हैं जैसे गेंहू, दाल और अन्य खाद्य वस्तुओं में भी प्रोटीन के स्तर को सुधारने का प्रयास किया जाना चाहिए।
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