खटर-पटर निखट्टू- संतों... हमारे गांवों में एक कहावत कही जाती है कि - मजा मारैं गाज़ी मियां, धक्का सहैं मुज़ावर? यानि किसी और की कमाई पर ऐश करना। देश की संसद से लेकर विधान सभाओं तक यही एक चीज देखने को मिल रही है। जिस संसद को हमारे चुने हुए सांसद हंगामा करके रोके हुए हैं, उसके ऊपर होने वाले करोड़ों का खर्च जनता की जेब से जाता है। ऐसे में हमारी मोटी खोपड़ी में एक सवाल रह-रह कर आता है कि आखिर जब प्रधानमंत्री जी इतनी बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक कर ही रहे हैं, तो फिर लगे हाथ ये भी फैसला हो जाना चाहिए, कि आखिर मोटा वेतन और भत्ता लेने वाले सांसदों के संसद की कार्यवाही रोकने का $खामियाज़ा देश की जनता क्यों भुगते? उसने क्या बिगाड़ा है? मोटी तनख़्वाह और भत्ते लें ये और ऊपर से बिना काम के कार्यवाही रोक कर लालबत्ती वाली गाडिय़ों में घूमें। पैसे जनता की जेब से जाएं? अरे भाई हम अगर काम नहीं करेंगे तो हमें तनख्वाह कौन देगा? लेकिन इसी को कहते हैं लोकतंत्र की ल_ाशाही....यहां ऐसे भी लोग रहे हैं जिन्होंने बिना काम किए पूरी जिंदगी आराम से तनख़्वाह भी ली, रिटायर्ड हुए तो पेंशन भी उठाई और पूरी जिंदगी बिना टें...