व्यवस्था और क्रियान्वयन





विकास के दो पैर होते हैं व्यवस्था और क्रियान्वयन। इनमें से एक भी गड़बड़ हो जाए तो विकास का विनाश होते देर नहीं लगती। ऐसा  ही नजारा इन दिनों छत्तीसगढ़ में देखने को मिल रहा है। यहां कांकेर में छह लोगों की आंखों की रोशनी जाने और उनके साथ ठगी करके भगी एनजीओ के आधिकारी मौज कर रहे हैं। तो वहीं बुजुर्गी में अपनी आंखों की रौशनी खो चुके गरीब लोग खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। दूसरा मामला नारायणपुर जिला मुख्यालय के एक अस्पताल में सामने आया है। यहां 19 महीने में 55 गर्भपात करने वाले अस्पताल के संचालक पर एफआईआर दर्ज हो गई है। उसके बाद से वो डॉक्टर फरार बताया जा रहा है। सवाल तो ये है कि सरकार और उसके तमाम अहलकारों के रहते हुए ऐसा कैसे हुआ? एक ओर तो हम बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ की बात करते हैं। क्या ऐसे ही पढ़ेगी और बढ़ेगी बेटी? जहां जन्म से लेकर पढऩे जाने तक उसके साथ ऐसे-ऐसे कांड हो रहे हैं? सरकार आखिर ऐसा झूठ क्यों बोल रही है? जाहिर सी बात है कि व्यवस्था और क्रियान्वयन दोनों ही यहां सड़ चुके हैं। इनको बदलना लाजि़मी है। एनजीओ लोगों को लूट रहे हैं। मुफ्त ऑपरेशन कराने के नाम पर लोगों को ठग रहे हैं। तो कहीं डॉक्टर मरीजों को दुरियाते और भगाते दिखाई दे रहे हैं। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल का क्या हाल है इसको शायद किसी को बताने की जरूरत नहीं है। जहां न ढंग से डॉक्टर मिलते हैं और न ही दवाई। अलबत्ता मरीजों के परिजनों को धक्के और गालियां जरूर मिल जाती हैं। कोई सवाल किया तो दरवान आकर पीट देता है। डॉक्टर्स तो खुद को भगवान समझते हैं। उनके ऊपर हैं प्रोफेसर्स जो गरीबों को हाथ तक लगाना उचित नहीं समझते। हां इनको पैसे जरूर भरपूर चाहिए। सरकार दे भी रही है मगर ये अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रहे हैं। ऐसे में भला प्रदेश का विकास कैसे हो सकता है?
जनता अब इनकी बातों से पूरी तरह ऊब चुकी है। अब उसको दावे नहीं दवाई चाहिए। डॉक्टर्स हैं तो वो मरीजों को देखें, उनकी सुनें और जो भी इलाज की व्यवस्था हो उसके मुताबिक इलाज करें। मरीजों को लाने वाली एम्बुलेंस से डॉक्टर साहब का खपरा ढोने से अब काम नहीं चलने वाला। तो वहीं मंत्रियों को भी ये बात समझनी होगी कि ये पब्लिक है सब जानती है। यदि उन्होंने भी अपना काम ठीक से नहीं किया तो आने वाले चुनाव में जनता उनको भी सबक सिखा देगी इसमें कोई दो राय नहीं है।

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