बैंक की कतार में बूढे






केंद्र सरकार की नोटबंदी के बाद बैंकों की कतार में सिर्फ बूढ़े लोगों को लगा देखकर अचानक चौंकना पड़ा। सरकार ने एक दिन बुजुर्गों के नोट बदलने के लिए तय कर एक बेहतरीन कदम उठाया है। देश की तमाम बैंकें ऐसी भी रहीं, जहां नि:शक्तों और बुजुर्गों के लिए कोई लाइन नहीं हुआ करती थी। दोनों की शारीरिक क्षमता भी इतनी कम होती है कि वे भीड़ का सामना नहीं कर सकते। ऐसे में सरकार के इस ऐतिहासिक कदम की सराहना होनी चाहिए। हालांकि अन्ना ने इसकी सराहना भी की है।
प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छता अभियान पर एक ओर जहां अदालते तल्ख़्ा टिप्पणीं करने पर लगी हैं, तो वहीं बैंकों ने होम लोन सस्ते करने के संकेत देने शुरू कर दिए हैं। इसके अलावा लगातार कालेधन की बरामदगी हो रही है। तो वहीं प्रधानमंत्री ने आईटी की 200 टीमों को हाइवे के आसपास की जमीनों की जानकारी लेने के लिए तैनात किया है। वित्त मंत्री पहले ही साफ कर चुके हैं कि हजार के नोट नए नहीं आएंगे। यानि कालेधन के मामले में ज्यादातर नोट हजार और पांच सौ के बताए जा रहे हैं। ऐसे में एक बात तो तय है कि इससे बड़ी तादाद में कालेधन की सफाई हो जाएगी। परेशानी ये है कि आम जनता को जहां दैनिक जरूरतों के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो वहीं कालाधन रखने वालों की सांसें फूल रही हैं। इससे फायदा सरकार को ही होता दिखाई दे रहा है। जहां सरकारी खजाने में जमकर धन लक्ष्मी की बारिश हो रही है। तो वहीं वर्षों से लंबित करों का लोग भुगतान कर अपनी पुरानी करेंसी को ठिकाने लगाने में जुटे हैं। बुजुर्गों को आखिर पैसे भी चाहिए तो कितने? बस अपनी जरूरतों भर के। कुछ रोज पहले की ही तो बात है प्रधानमंत्री की मां हीराबेन ने बैंक जाकर अपने पुराने नोटों को बदलवाया था। ऐसे में वरिष्ठ नागरिकों को एक दिन लाइनों में लगवाकर प्रधानमंत्री ने ये संदेश देने की कोशिश की है, कि वे माताओं का ही नहीं, बल्कि बुजुर्गों का भी सम्मान करते हैं।   इससे नि:संदेह समाज में एक सकारात्मक संदेश जाएगा।

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