सीताफल 16 हजार लोगों की जिंदगी रहा बदल








-नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया का असल रोल मॉडल बना राज्य का नक्सलवाद प्रभावित जिला कांकेर। यहां की कलेक्टर ने जंगली सीताफल की ब्रांडिंग कर उससे 16 हजार से ज्यादा लोगों के रोजगार की व्यवस्था की। इससे उनकी जिंदगी में बदलाव आ रहा है। इस सीताफल परियोजना ने यहां के तमाम लोगों की जिंदगी बदल दी है। जिस इलाके को धुर नक्सलवाद प्रभावित इलाका कहा जाता था, उसे  अब सीताफल द्वीप के नाम से जानते हैं। अब कलेक्टर की तैयारी इसके गूदे के प्रीजर्वेशन करने की है। इससे भविष्य में आइसक्रीम और खीर बनाने की योजना है। इसकी मांग दिनों-दिन बाजार में बढ़ती जा रही है।
जंगलों में 6 हजार मीट्रिक टन होता है सीताफल का उत्पादन


कांकेर।
क्या है पूरा मामला-
 
ये जिला एक माओवादी इलाका है, जहां जंगलों में सीताफल के असंख्य पेड़ उगे हुए हैं।  कुदरती तौर पर जंगलों में फलने वाले सीताफल की अब तक कोई पहचान नहीं थी।  जिले में लगभग 6000 मीट्रिक टन सीताफल उत्पादन होता है।  कुछ आदिवासी इन्हें एकत्र करते थे जिसे व्यापारी इनसे औने-पौने दाम में खरीद लेते थे।
कलेक्टर ने कराई जंगली सीताफल की ब्रांडिंग-
कलेक्टर की एक पहल ने 16 हजार लोगों को रोजगार दिलाया,और कांकेर मशहूर हो गया। कलेक्टर शम्मी आबदी ने सीताफल परियोजना के तहत एक अभियान चलाया।  जिला प्रशासन और कृषि विभाग ने कांकेर वैली फ्रेश के नाम से ब्रांड तैयार कर समूहों के माध्यम से सीताफल संग्रहण, ग्रेडिंग, पैकेजिंग और वैल्यू एडिशन की योजना तैयार की।
सरकार से दिलवाई मदद-
जिले के चार विकासखंडों में चार सौ दस रोजगार सहायक मित्र व 774 सीताफल संग्राहकों को प्रशिक्षित किया गया।  गांव-गांव में समिति बनाकर प्रशिक्षित कृषक संग्राहकों को 15 हजार पैकिंग बॉक्स, 2 हजार कैरेट जिला प्रशासन ने नि:शुल्क प्रदान किए।  इस तरह सीताफल कार्ययोजना शुरू की गई। इस परियोजना के माध्यम से संग्राहकों को सीताफल का उचित मूल्य मिलने के साथ ही 16 हजार से भी अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है, अब इस फल की मांग राज्य के बाहर भी होने लगी है।
सीताफल द्वीप के नाम से जानते हैं लोग-
उपसंचालक कृषि का कहना है कि इस योजना में हितग्राहियों को अच्छा लाभ मिल रहा है और वे आत्मनिर्भर हुए हैं।  कलेक्टर के मार्गदर्शन से शुरू हुई इस योजना में वर्तमान में 7 समूह काम कर रहे हैं।  बस्तर का स्वादिष्ट फल अब बस्तर के बाहर अपनी पहचान बना रहा है और इस तरह माओवादी इलाके के नाम से बदनाम बस्तर अब सीताफल के द्वीप के नाम से जाना जाने लगा है और लोग इसे खाने के लिए लालायित हैं।
आइसक्रीम और खीर बनाने की योजना-
उन्होंने बताया कि इस परियोजना के तहत सीताफल का गूदा निकलकर एक साल तक सुरक्षित रखने की भी योजना बनाई गई है, जिसका उपयोग आइसक्रीम और खीर के रूप में किया जा सकेगा।
घर के कामकाज करने के बाद करती हैं ये काम-
इस कार्य में लगी एक ग्रामीण महिला ने बताया कि वह घर का कामकाज करने के बाद इस सीताफल परियोजना में काम करती हैं और उन्हें अच्छा लाभ मिलने लगा है।  लोगों का कहना है कि सरकार की पुनर्वास नीति के तहत क्षेत्र में शांति आने लगी है।  लोग अब इस इलाके में आ रहे हैं और हमें प्रोत्साहन भी दे रहे हैं।
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