चांद के बहाने

खटर-पटर

निखट्टू-
संतों...कल रात को देश में सबसे बड़ा चांद निकला। वैसे उर्दू शाइरी में चांद को लेकर तमाम बातें कही गई हैं। कुछ लोग अपनी महबूबा को ही चांद कहने लगे। इसकी एक बानगी यूं देखिए कि- पूछा जो उनसे चांद निकलता है किस तरह, जुल्$फों को रुख पे डाल के झटका दिया कि यूं। अब रात को दफ्तर से थका हारा जब घर पहुंचा तो देखा कि लोग छतों पर कुछ निहारने में लगे हैं। मैं अभी -अभी छत पर खड़ा ही हुआ था कि पीछे से घरवाली की आवाज आई क्या देख रहे हो जी? मैंने सहजता से उत्तर दिया कि चांद। मेरा इतना कहना था कि वो पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू जहाज की तरह दनदनाती कमरे में चली गईं। अब मुझे पता चल गया कि मेरे जवाब ने मेरे चांद को ज्वालामुखी बना दिया था।  विस्फोट तो होना ही था। मैं कमरे  के अंदर गया और बोला क्या हुआ जी... आप अचानक अंदर क्यों चली आईं। तो और क्या करती वहां? आप तो चांद देख रहे थे न...? तो जाकर और देख लीजिए? मैंने कहा आज सबसे बड़ा चांद निकला है। उनका पारा और चढ़ गया वो बोलीं हां...भई हां...आसपास की छतों पर जितनी भी चांद टहल रही हैं सब बड़ी-बड़ी ही हैं। लंबाई तो हमारी कम है। ये सुनकर मैं तो एकबारगी सकपका गया। मैंने कहा मैडम... मेरा उद्देश्य ये बिल्कुल नहीं था। अच्छा.... तो अब इस उम्र में मेरा उद्देश्य आपको खराब नज़र आने लगा है। तब तक हमारे प्रकाश सिंह भाईसाहब का फोन आ गया। बोले भैया... क्या हाल है? मैंने पूछा क्या कर रहे हो? जवाब मिला जिस चांद का हाथ आपने मुझे दस साल पहले थमाया था, उसी का हाथ थामें छत पर खड़ा हूं। बस सोचा कि भइया और भाभी का आशीर्वाद ले लूं। लगे हाथ उसने मजाक भी किया कि अरे क्या हुआ घर के सबसे  बड़े चांद का? मैंने कहा चुप रह...वो तो ज्वालामुखी हो चुकी हैं। सुनते ही प्रकाश ने जोर का ठहाका लगाया। मैंने कहा तू बहू को फोन दे... वही मनाएगी उनको। फिर बहू से बात करने के बाद उनका मूड थोड़ा ठीक हुआ।
मैंने प्रकाश को अपनी पीड़ा बताई - मैंने कहा भाई क्या दिन आ गए? कभी चांद कह देने से गर्मागरम चाय के साथ पकौडिय़ां खाने को मिलती थीं। आजकल तो डांट खाने को मिल रही है। प्रकाश ने कहा हां भैया मैं आपकी पीड़ा समझता हूं, मगर  भाभीजी समझें तब न? मैंने कहा क्या वो बोला- उसी चांद के चक्कर में आपकी खोपड़ी भी चांद हो गई। मैंने बनावटी गुस्से से कहा बदमाश कहीं का ? रख फोन नहीं तो मैं आता हूं अभी। वैसे कल वाला चांद जो निकला था वो भी बड़ा ऐतिहासिक है। ऐसा चांद देखने के लिए अब लोगों को सदियों तक का इंतजार करना पड़ेगा, और जिनको इंतजार न करना हो वो मेरी गंजी चांद देखकर संतोष करें। क्यों  समझ गए न सर.... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर... तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी...तब तक के लिए जै....जै।
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