बन्ने मियां को हमारी सलाह

खटर-पटर

निखट्टू-
संतों.... हमारे मोहल्ले में राम लाल नामक भद्र व्यक्ति रहते हैं। उनकी पीड़ा ये है कि उनको मुहल्ले में जो कोई भी पाता है पीट देता है। कोई अपने दरवाजे से गली तक घसीट देता है। कोई गाली देता है मगर राम लाल कभी किसी को कुछ भी नहीं कहते। लोग उनकी उदारता का नाजायज़ फायदा उठा लेते हैं। पूरे मोहल्ले में ऐसे कई दर्जन घर होंगे जिन्होंने राम लाल से कुछ न कुछ जरूर लिया है, मगर वापस नहीं दिया। अच्छा राम लाल देकर भी खुश रहते हैं। ये देखकर राम लाल के पड़ोसी  बन्ने मियां  जलते हैं। बन्ने मियां काम गांव से काफी दूर कुछ जमींदारों की ज$कात से चलता है। हराम की खाता है और राम लाल को जमकर गालियां बकता है। कभी- कभार बगल बैठ कर चिकोट लेता है। तो कभी नाखून मार कर खून निकाल लेता है। एक रात तो हद हो गई उसके नाजायज़ बच्चों ने राम लाल के बच्चों को सोते में मार डाला। लाल खोने के $गम में झल्ला गए राम लाल मूंछों पर दिया ताव और ठोंकी ताल। तोड़कर उसके घर के बाहर की बाड़ जाकर मारी जोरदार दहाड़....  बन्ने मियां के नाज़ायज नन्हें-नन्हें पचासों बच्चों को सुर्ती की तरह फुर्ती से मसल दिया। उनको बचाने के चक्कर में बन्ने मियां के कुछ बेटों की भी चली गई जान।  ठोंक पीट कर सुबह होते-होते अपने घर आ गए रामलाल पहलवान। अब एक दिन ये पोल उनके ही भाई ने दी खोल तब से डब्बा हो गया गोल। अब ये कहते हैं हमने मारा.... तो बन्ने मियां चिल्ला रहे नहीं मारा। तो उधर बन्ने मियां के बगल बच्चे और उनके काबिले तारीफ चच्चे लग रहा है कि राम लाल को चबा जाएंगे कच्चे। हम तो यही पूछते कि मियां बन्ने सच्ची बताना कि ....मारा था या नहीं? अगर हां तो कोई बात नहीं और अगर नहीं तो ये आपके बगल बच्चे क्यों दहशतजदा हैं? हमारा तो इंशाल्लाह बन्ने मियां को मश् वरा है कि भाई सुधर जाओ नहीं तो तुम्हारे बिगडऩे के दिन आ गए हैं। तो क्यों समझ गए न सर... अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर तो कल आपसे फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए जै....जै।

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