गरीबों को ठगते एनजीओ





थोड़े समय में ज्यादा कमाई की लालच लोगों को कहां ले जा रही है। इसका जीता-जागता नमूना राज्य के कांकेर में देखने को मिला। यहां एक एनजीओ ने गरीबों के स्मार्ट कार्ड से पैसे निकालने का नया फार्मूला निकाला। उसने अपने एजेंटों को गांवों में गरीबों के मोतियाबिंद का ऑपरेशन मुफ्त रायपुर के एक निजी अस्पताल में करवाने का झांसा दिया। उनको रायपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया। इसके बाद उनके अंगूठे सादे कागज पर लेकर उनके स्मार्ट कार्ड से रकम निकलवा ली। तो  वहीं अस्पताल के डॉक्टर्स की लापरवाही से 5 लोगों के आंखों की रौशनी भी चली गई। मामले का खुलासा होने पर कोहराम मचा। तो सरकार ने अपनी नाक बचाने के लिए जांच दल गठित कर दिया। उसने अपनी रिपोर्ट भी दे दी, मगर अब उस एनजीओ और इन डॉक्टर्स पर कार्रवाई करने में सरकारी अधिकारियो के हाथ कांप रहे हैं। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या गरीबों के पैसे कोई इस तरह भी लूट सकता है? ये कोई नया मामला नहीं है। इससे पहले भी गांवो से ऐसे तमाम लोग राजधानी के अस्पतालों में लोगों को लाकर भर्ती करवा कर पैसों का हेरफेर करते पाए गए हैं। घटना का दु:खद पहलू ये है कि जिनकी आंखों की रौशनी गई है वे बेचारे बेहद गरीब परिवारों के लोग हैं। कुुल 19 लोगों की आंखों का ऑपरेशन करवाया गया था। जिनमें से 14 की आंखों में थोड़ी रौशनी आई है तो बाकी के 5 लोगों की आंखों में रौशनी आई तक नहीं। मजेदार बात आईएमए जैसी संस्थाओं ने भी आंखों पर पट्टी बांध रखा है। इन्होंने भी उन डॉक्टर्स के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। सवाल तो ये भी है कि क्या किसी वैध डिग्रीधारी डॉक्टर को कानून ये अधिकार देता है कि वो किसी की आंख फोड़ डाले? या किसी को जहरीला इंजेक् शन देकर मार डाले? आखिर क्यों ऐसे डॉक्टर्स के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई नहीं की गई? ये सभी के सभी बुजुर्ग इसके बाद से ये लोग खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।   दरअसल अगर यही काम किसी गरीब ने किया होता तो उस पर तत्काल कार्रवाई हो जाती। पुलिस के जांबाज सिपाही उसको पकड़कर इतना पीटते कि वो अपना भी नाम भूल जाता। अब मामला रसूखदारों का ठहरा तो पुलिस के हाथ कांपने लग गए। सरकार को ऐसे गरीबों के मामले में तत्काल  कार्रवाई करनी चाहिए ताकि लोगों का विश्वास देश की कानून और व्यवस्था में कायम हो सके।

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