हांफते अस्पताल का हाल

खटर-पटर

निखट्टू-
संतों..... जरा सी सर्दी क्या बढ़ी लोगों ने खांसना छींकना शुरू कर दिया। इसका सबसे अहम कारण है बढ़ता प्रदूषण। राजधानी की हवा-पानी मिट्टी-गिट्टी सब में प्रदूषण ही प्रदूषण है। वैसे भी जब मौसम बदलने लगता है तो लोगों का ऐसा ही हाल होता है। अब लोगों को बुखार-सर्दी होती देखकर राजधानी के अस्पताल हांफने लग गए। डॉक्टर साहब का बीपी हाई हो गया। सिस्टर जी मिनिस्टर हो गईं। वार्ड ब्वाय भी अन्य-आय करने में लग गया। तो वहीं तमाम और ऐब लैब तकनीशियन की देखरेख में पनपने लगे। क्या छोटा क्या बड़ा सारे के सारे अस्पताल निढाल हो गए। स्वास्थ्य विभाग के दावे पता नहीं किस ओर सरक गए किसी को पता तक नहीं चला। मेरी छोटी से बुध्दि में एक मोटा सा सवाल आ रहा है कि आखिर करोड़ों की दवाई किसने खाई? स्टॉक में दवाएं, सैलाइन, बैंडेज, ग्लब्स, सिरिंज, इंजेक् शन और तमाम तरह के दूसरे सामान ऐसे गायब हुए जैसे हिंदुस्तान से दाउद इब्रहिम। बुरा हो इस पत्रकारिता का हमारी ड्यूटी लगा दी गई कि पता करो कि कहां गई सारी दवाई? उधर मंत्री जी बातें कर रहे हवाहवाई। अब इनको कौन समझाए कि भैया हमने थोड़े खाई इतनी सारी दवाई? अरे ऊ.... अस्पताल वालों ने अगल-बगल की दवा दुकानों में देकर कर ली अतिरिक्त कमाई...अब ये आफत भी हमारे ही ऊपर आई। अस्पताल की मैली फर्श पर इठलाती नर्स...जिसकी सैलरी बढ़ती है हर वर्ष। रोज मरीजों के परिजन गर्म करते हैं जिसका पर्स, गरीब मरीजों को तो जोर से सूई हूलती है। ऊपर से ऐसे गुर्राती है जैसे सरकारी दवाएं उसके बाबूजी के घर से आती हैं। तो वही नर्स उसके पर्स में कुछ कड़कड़ाते रिजर्व बैंक वाले कागज डालने से रुई को स्प्रिट में भिगाकर सिरिंज में नई निडिल लगाकर आराम से इंजेक् शन लगाती है। डेढ़ इंच मुस्कराती है और फिर कहती है भैया...कोई काम हो तो बुला लेना। किसी कराहते और तड़पते इंसान को देखकर इनकी बांछें खिलती हैं क्योंकि उससे इनको नोट मिलती है। अस्पताल का दरवान भी खुद को भगवान समझता है। जब तब डंडा फटकारते चला आता है। यहां सोना है तो पचास रुपए दे दो। नहीं दोगे तो वहां से हटा देगा। हर दो घंटे पर औ$कात नापेगा आपकी...लेगेगा कि अस्पताल की फर्श है उसके बाप की। अब आप सोच रहे होंगे कि मैं ये सब आपको क्यों बता रहा हूं... तो भाई साहब मैं भी इनसे नोंचवा कर आ रहा हूं। ऐसे में आपसे निवेदन है कि अगर सरकारी अस्पताल जाएं तो खुद को ऐसे तत्वों से जरूर बचाएं। क्यों समझ गए न सर... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर। तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जै....जै।
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