बैंकर बेटी की सुरक्षा का जिम्मेदार कौन




 बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और बेटी है तो कल है, जैसे नारे लगाकर अपने -अपने चारे का जुगाड़ करने वाले लोगों का असली चेहरा ये है, कि इनको बेटियों की सुरक्षा से कोई लेना देना नहीं है। ऐसा हम इस लिए कह रहे हैं कि बैंकों में काम करने वाली बेटियों की सुरक्षा के कोई इंतजाम प्रशासन ने नहीं किए हैं। तो वहीं राज्य महिला आयोग के जिम्मेदार भी इस सवाल पर बगलें झांकते नज़र आए। इसके अलावा पुलिस के आलाअधिकारियों ने भी उनको उनके हाल पर ही छोड़ दिया है।  सवाल तो यही उठता है कि क्या ऐसे ही पढ़ेगी और बढ़ेगी बेटी? क्या हमारा बेटियों के प्रति यही दायित्व है?
बगलें झांकते लोग और प्रशासन मौन, दावे और नारे से ज्यादा कुछ भी नहीं, सरकार को किसी बड़ी अनहोनी का इंतजार
रायपुर।
क्या है पूरा मामला-
बैंक के काउंटर पर रविवार को दोपहर में लोगों को पैसे बांट रही एक लड़की ने नाम नहीं छापने की शर्त पर हमारी सरकार से अपना ये दर्द साझा किया। उसने बताया कि रात को 8 बजे तक तो बैंक खुला रहता है। इसके बाद कैश मिलाते-मिलाते ग्यारह बज जाते हैं। तब तक शहर की अधिकांश सड़कें सूनी हो जाती हैं। गली मोहल्लों में भी सन्नाटा पसर जाता है। अधिकांश लोग जानते हैं कि ये बंैक की कर्मचारी है। ऐसे में हमारे  साथ कोई भी हादसा हो सकता है। ये बताते-बताते वो युवती फपक पड़ी। उसका सवाल भी जायज़ है।  लोग तो अपना कैश लेकर ऐश कर रहे हैं मगर उनको  कैश मुहैय्या कराने वाली एक लड़की की सुरक्षा की परवाह न तो शासन-प्रशासन को है और न ही किसी बैंक के प्रबंधन को।
क्या कहते हैं जिम्मेदार-
महिलाओं के अधिकारों को लेकर बनाए गए राज्य महिला आयोग की सदस्या खिलेश्वरी किरण सवाल सुनने के बाद बड़े आराम से बताती हैं कि वो अस्पताल में भर्ती हैं।
महिला आयोग की अध्यक्षा हर्षिता पाण्डेय के फोन पर घंटी बजती रही और उन्होंने फोन नहीं उठाया। इसके अलावा आयोग की वेबसाइट पर भी उन्होंने अपना मोबाइल नंबर नहीं डाला है। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या ऐसे ही राज्य में बेटियां बचेंगी और पढ़ेंगी?
टोल फ्री नंबर भी व्यस्त-
महिला आयोग का टोल फ्री नंबर पूरे दिन व्यस्त रहा। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि जब सारे दफ्तरों में छुट्टी थी तो इस नंबर पर आखिर कौन बात कर रहा था?
मैं कोशिश करता हूं: गृह मंत्री-
सवाल सुनने के बाद गृहमंत्री रामसेवक पैकरा ने हमारी सरकार को ये आश्वासन दिया है कि वो अपने स्तर पर इसको लेकर पुलिस के आला अधिकारियों से बात करेंगे।  उन्होंने ये भी माना कि ये एक बेहद गंभीर मामला है।
पुरुष सहयोगी छोड़ते हैं घर: आइजी-
इस मामले पर आईजी पुलिस पवन गुप्ता का कहना है कि बैंकों के पुरुष सहयोगी अपनी महिला सहयोगियों को उनके घर तक छोड़कर आ रहे हैं। जब कि महिलाओं और युवतियों ने इसको सफेद झूठ बताया है।
कलेक्टर ने बंद किया फोन-
इस संदर्भ में रायपुर के कलेक्टर ओपी चौधरी से जब उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो उनका सरकारी मोबाइल स्विचऑफ पाया गया। इससे साफ समझा जा सकता है कि कलेक्टर साहब को जिले के लोगों की कितनी परवाह है?
मैं बाद में बात करता हूं: पुलिस अधीक्षक-
पुलिस अधीक्षक डॉ. संजीव शुक्ला से जब उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो उन्होंने ये कहकर फोन रख दिया कि मैं अभी एक जगह बैठा हूं। मैं आपसे बाद में बात करूंगा।

काम के नाम पर धड़ाम-
वेतन में चेतन-चतुर और काम के नाम पर धड़ाम होने वाली इस व्यवस्था का हाल देखकर हर बेटी का पालक भला ङ्क्षचतित क्यों न हो ? इसकी असली पीड़ा तो वही बाप समझ सकता है जिसकी सयानी बेटी- रात को ग्यारह बजे तक घर नहीं पहुंची हो। राजधानी में अपराधियों के बढ़े हौसले और पुलिस की गैर जिम्मेदारी को लेकर व्यवस्था को चौकस रहना होगा। वर्ना कभी भी कोई बड़ा हादसा पेश  आ सकता है।
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