सांसत में महिला बैंक कर्मचारी






 प्रधानमंत्री के कालेधन पर चलाए गए सर्जिकल स्ट्राइक से एक ओर जहां पूरे देश में खुशी का माहौल है। तो वहीं लोगों को रुपए मुहैय्या कराने वाली बैंकों में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा को लेकर किसी भी तरह के मुकम्मल इंतजाम नहीं किए गए हैं। रात 8 बजे तक खुलने वाले बैंकों में इनको कैश मिलाने का काम करते-करते लगभग 3 घंटे और लग जाते हैं। ऐसे में एक अकेली लड़की अथवा महिला अगर शहर की सूनसान सड़क पर अपने घर जाएगी तो उसकी सुरक्षा की कोई व्यवस्था शासन के पास नहीं है। राजधानी में अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। ऐसे में अगर कोई अनहोनी उनके साथ हो जाए तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? इस सवाल पर राज्य के महिलाओं के अधिकारों की हुंकार भरने वाले राज्य महिला आयोग के जिम्मेदारों ने होंठ सी रखे हैं। गृहमंत्री इसको लेकर थोड़े चिंतित भी दिखाई दिए मगर बाकी के लोग बिल्कुुल आराम के मूड में नजर आए। इनका रुख देखकर लगा कि ये शहर में फिर किसी बड़ी अनहोनी का इंतजार कर रहे हैं। तो वहीं रात को ड्यूटी से छूटने वाली लड़कियों के चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई हैं। कठोर परिश्रम से थकी हारी जब वो लड़की रात को साढ़े ग्यारह बजे अपने घर पहुंचेगी  तो क्या खाएगी और कब सोएगी उसकी परवाह किसी को भी नहीं है। कलेक्टर से लेकर पुलिस अधीक्षक तक इस मुद्दे पर कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं। ये शहर की सुरक्षा के जिम्मेदारों का हाल देखकर आम आदमी जलभुन जाता है। इनको बस अपनी नौकरी और अपनी तनख्वाह से मतलब है।
सरकार को चाहिए कि वो ऐसे तमाम जिम्मेदार अधिकारियों की कार्यसूची को भी ऑनलाइन करे। जनता को पता होना चाहिए कि सामने वाला अधिकारी कितना कर्तव्यपरायण है। उसी के आधार पर उनको वेतन का भुगतान हो। इसकी बहुत सख्त जरूरत है। तो वहीं देर रात ड्यूटी से छूटने वाली लड़कियों की सुरक्षा सरकार मुहैय्या कराए ये उसकी नैतिक जिम्मेदारी भी है। अगर वो ऐसा नहीं कर पाती है तो फिर उसको बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ और बेटी है तो कल है जैसे नारे लगाने का काई अधिकार नहीं है।
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