मेहसाणा के महारथी

खटर-पटर

निखट्टू-
संतों....प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच सौ और हजार रुपए के नोट क्या बंद किए। आतंकवादियों के आ$काओं, नक्सलियों के नम्बरदारों और हवाला के हलवाईयों तथा देश के विपक्षी नेताओं के चेहरे से हवाइयां उडऩे लगी हैं। सत्ता संभालते ही उन्होंने सर्व प्रथम स्वच्छता अभियान चलाया था। खुद झाडू़ लगाई, तो देश भी जहां कचरा दिखा दो हाथ मारने के मूड में आ गया। झाड़ू लगाते-लगाते प्रधानमंत्री के ज्ञान चक्षु वहां जा पहुंचे जहां कालाधन दिखा। अब सफाई करने निकले थे, तो उसकी भी सफाई कर डाली। अचानक लगा कि आतंकियों के आ$काओं और नक्सलियों के नम्बरदारों पास तो इससे भी ज्यादा कचरा होगा? तो उन्होंने तत्काल प्रभाव से नोट बंद कर ऐसी चोट मारी कि बिना गोली और बम....70 फीसदी आतंकवाद खत्म। हमारे बचपन में हम लोग महात्मा गांधी के लिए एक कविता पढ़ा  करते थे कि.. दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। आज उसी को देश का युवा वर्ग थोड़ा बदल कर गा रहा है। कि दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, मेहसाणा वाले संत तूने कर दिया कमाल। आतंकवाद से लड़ी क्या गजब  की लड़ाई दागी न ज्यादा तोपें न तलवार चलाई। आतंक के आ$काओं तो कर दिया निढाल। मेहसाणा वाले संत तूने कर दिया कमाल। हमारे यहां एक कहावत है कि जिसका बैल है वो कहता है कि ये हल नहीं खींचता, मगर पड़ोसी कहता है नहीं दो बिस्सा जोतता है। यही हाल इस देश में इस वक्त चल रहा है। प्रधानमंत्री का ये स्वच्छता अभियान बहुत से लोगों को खल रहा है। देश का युवा और बुध्दिजीवी वर्ग उनको पर्याप्त समय देने को तैयार है। तो अब नेताओं के पेट में ये सोचकर दर्द हो रहा है कि हमारे उन पैसों का क्या होगा जो हमारी आलमारियों में ठूंसे पड़े हैं? अब भीतर हैं जख़्म गहरे कहें भी तो क्या कहें, फिर भी  लबों पे पहरे कहें भी तो क्या कहें। जी हां, ऐसे लोगों को अब उनकी दुकान खतरे में लगने लगी। ये मेहसाणा वाले महारथी ने इनकी सियासत की बसी बसाई गृहस्थी उजाड़ दी। हराम की कमाई पर ऐसी दवाई लगाई कि उसकी तो जिंदगी खराब हो ही गई। अब डर लग रहा है कि कहीं इनकी भी जिंदगी न खराब हो जाए। इसी लिए भीतर-भीतर खेल चल रहा है आओ ने साथी हाथ मिलाएं। एक जन तो संसद में उनको बिना डिग्री का सर्जन तक कह डाले। मजेदार बात तो ये कि ये कोई साधारण अथवा कम पढ़े लिखे इंसान नहीं हैं। ये सज्जन...हमारे लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर के सांसद हैं। उनके संसदीय क्षेत्र के लोगों को अब शर्म आ रही होगी कि अरे यार...किसको चुनकर भेज दिया? जो देश का  न हुआ तो वो हमारा क्या होगा? ऐसे लोग भी आज लोकतंत्र के मंदिर में जाकर हुंकार रहे हैं। जिनका अपना कोई भी व्यक्तिगत योगदान नहीं है। जिनको खाली अपनी कुर्सी अपनी गाड़ी अपना बॉडीगार्ड और अपनी तनख्वाह से ज्यादा कुछ दिखाई ही नहीं देता। ये कालेधन की विषैली गाजर घास इन्हीं लोगों के समय में फैली और फूली-फली। अब उससे देश की अर्थ व्यवस्था को ही नहीं तमाम दूसरे नुकसान भी हो रहे हैं। तो प्रधानमंत्री ने इसकी सफाई कर दी तो इनके पेट में दर्द हो गया?इनको जहां मौका मिल रहा है चीख रहे हैं। बड़े अजीब से दिख रहे हैं। एक हम भी हैं जो बिना काम के ऐसे लोगों पर कुछ लिख रहे हैं। तो समझ गए न सर...अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर ...तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी। तब तक के लिए जै...जै।
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