कवि के कर्म का मर्म

खटर-पटर

निखट्टू

संतों....एक रात एक वीर रस के कवि ने दारू पी ली। अब नशे में जोर-जोर से चिल्लाने लगा- लाशों पर लाश बिछा दूंगा, लाशों पर लाश बिछा दूंगा। इससे पहले वो अपने बच्चों को दुश्मन समझ कर छत पर घसीट चुका था। तीन बार पत्नी को पीट चुका था। इसके बाद उनकी पत्नी ने मुझे फोन पर बताया कि भाई  साहब आज तो ये गजब ढा रहे हैं। ग्यारह बजे रात को पता नहीं कहां से पीकर आ रहे हैं। नशे में जमकर उत्पात मचा रहे हैं। आप या तो अपने मित्र को संभालिए नहीं तो मैं बच्चों को लेकर मायके चली जाऊंगी। सुनकर मैं तो सन्न रह गया। नशे में मित्र और पशोपेश में मैं। कि क्या किया जाए। मैंने भाभी जी को कहा कि देखिए आप उनसे हाथ जोड़कर कहिए कि हे महाकवि... आप लाशों पर लाशें कल बिछा लीजिएगा। अब मुझे नींद आ रही है लिहाजा अब तो बिस्तर बिछा दीजिए। पहले तो वो लजाईं सकुचाईं मगर बाद में मेरा कहा मान लिया। जैसे ही उन्होंने एक भारतीय महिला की तरह ये निवेदन भाई साहब से किया कमाल हो गया। उन्होंने तत्काल बिस्तर ठीक किया और बच्चों को खोज-खोज कर लाए और सुला दिया। इसके बाद चुपचाप खुद भी सो गए। मगर यहां हमारी दिल्ली में भी एक कवि के मित्र आजकल बड़ा इत्र लगा-लगा कर घूम रहे हैं। उनकी करनी से पूरी दिल्ली हांफ रही है। खांस रही है मगर साहब हैं कि कुछ न करने की कसम खा ली है। कुर्सी मिलने के पहले तो लोग इनसे सीधे मिल लिया करते थे। ये बिजली का अवैध कनेक् शन काटने खुद खम्भों पर चढ़ जाया करते थे। मगर अब तो आलम ये है कि किसी की सुनते ही नहीं? अब उन कवि जी को इन्हें सलाह देनी चाहिए कि नहीं ? कि हे आदरणीय-फादरणीय मित्र....आप इत्र थोड़ा कम ही लगाएं मगर इस प्रदूषण के खरदूषण को भगाने की कोई मुकम्मल व्यवस्था जरूर कर दीजिए। अब ऐसे में कवि जी का भले ही प्रदूषण से दम घुट जाए मगर ये लगता है कि बोलने वाले नहीं हैं। बस कवि सम्मेलनों में धुआंधार बोलते हैं। एक कविता पढऩे के पहले आठ चुटकुले ठेल देते हैं,और उस पर भी नसीहत देते हैं  कर्म प्रधान विश्व करि राखा...ऐसे लोग भी अब लोगों को समझा रहे हैं कर्म का मर्म....दिल्ली की हालत देखकर पूरे देश को आ रही है शर्म....कुछ बोलने पर हो जाते हैं गर्म...क्या यही होता है एक नेता का धर्म? तो क्यों समझ गए न सर..... तो अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर...तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी तब तक के लिए जै....जै।
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