कुपोषण में भी शोषण
खटर-पटर
निखट्टू-
संतों... दादा छविनाथ मिश्र जी कह गए कि- खाओ पियो उड़ाओ ऐश... राम भरोसे पूरा देश, भाषा-भूसी नारा-चारा अब दे मारा तब दे मारा। भजमन प्यारे टका-टकेश, राम भरोसे पूरा देश। ये बात पक्की है कि अपनी पूरी जिंदगी में दादा कभी छत्तीसगढ़ नहीं आए, मगर उनकी पकड़ देखिए-शासन -प्रशासन को लेकर उन्होंने जमकर तंज़ कसा है। यहां के अधिकारी कर्मचारी खा भी रहे हंै और पी भी रहे हैं। उद्योगपति ऐश उड़ा रहे हैं। तो अधिकारी योजनाओं का मजाक उड़ाने में लगे हैं। आदिवासियों के बच्चों के कुपोषण के नाम पर अधिकारियों के रिश्तेदारों की गायों का पोषण हो रहा है। गरीबों के हिस्से की दलिया और तमाम रेडी टू ईट गऊ मैया आराम से खाती हैं। बदले में सबेरे साहब को पौष्टिक दूध देती हैं। तो गरीबों के बच्चों को जो इनसे बच जाता है उसको कभी- कभार बांट कर कागजी खानापूरी कर लिया करते हैं। सरकारी अधिकारी जो जांच में आते हैं उनकी भी थोड़ी सेवा हो जाया करती है। अब कुपोषण से मरने वाले बच्चे उनके अपने थोड़े ही हैं...मर जाएं उनकी बला से? हां कभी अपना बच्चा बीमार होता है तब समझ में आता है। गरीबों के बच्चों को राज्य में पोषण के नाम पर जो खिलाया जा रहा है वो किसी भी हालत में सही नहीं है। गरीबों के बच्चों को पिलाने के लिए सरकार ने सुगंधित मीठा दूध का कार्यक्रम शुरू करवाया। उसकी सफलता इस बात से समझी जा सकती है कि बस्तर में उसी दूध को पीकर एक आदिवासी बच्ची मर गई, जब कि तमाम इलाकों में कई दर्जन बच्चियां बीमार हुईं। खबरें जमकर छपीं तो महिला एवं बाल विकास मंत्री ने उसको बंद करवा दिया चुपके से। मजेदार बात तो ये कि उसकी फैक्टरी भी मंत्री के रिश्तेदार की थी। कुल मिलाकर सरकारी अधिकारी खाए ही जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी माना है कि केंद्र से चले एक रुपए में से गरीबों को महज सत्रह पैसे ही मिल पाते हैं। बाकी के 83 पैसे व्यवस्था खा जाती है। हम नमन करते हैं इस व्यवस्था की ऐसी अवस्था को। जब ये हाल है तो फिर यहां गरीबों के बच्चे क्यों न मरें? ऊपर से स्वच्छता का दावा किया जा रहा है। नोट बंद कर प्रधानमंत्री देश में परिवर्तन लाने की बात कर रहे हैं। तो विपक्ष ये कहकर अपना नर्तन जारी रखे है कि इससे कुछ भी नहीं होने वाला। असल में यदि इस बार प्रधानमंत्री चूक गए तो ये तो पक्का है कि देश का युवा वर्ग उनको अच्छी नज़र से नहीं देखेगा। जितनी भी योजनाएं सरकार बनाती है वो क्या असल आदमी तक पहुंच पाती हैं? इसी की समीक्षा कर ली जाए बात समझ में आ जाएगी। इसके लिए सिस्टम को जब तक कैशलेस नहीं बनाया जाएगा तब तक तो भ्रष्टाचार को रोकने की कल्पना भी बेमानी है। अब जब पूरा विपक्ष प्रधानमंत्री के सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर पिला पड़ा है। तब दुनिया के सबसे बड़े सर्जिकल स्ट्राइक के योध्दा हनुमान जी के लिए बाबा तुलसी दास द्वारा लिखित वो चौपाई याद आ रही है कि- सबके देह परम प्रिय स्वामी, मारहिं मोहिं कुमारगगामी। तो यहां वही हो रहा है। युवा पीढ़ी को पता है कि ये काम अच्छा है। इसलिए उसको युवा वर्ग तरजीह दे रहा है। अब जिस तरह से शिकंजा कसा जा रहा है। अगर ईमानदारी से उस पर अमल शुरू हुआ तो देश में एक परिवर्तन तो जरूर आएगा इसमें कोई दो राय नहीं है। तो समझ गए न सर....अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर... तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी, तब तक के लिए जै...जै।
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निखट्टू-
संतों... दादा छविनाथ मिश्र जी कह गए कि- खाओ पियो उड़ाओ ऐश... राम भरोसे पूरा देश, भाषा-भूसी नारा-चारा अब दे मारा तब दे मारा। भजमन प्यारे टका-टकेश, राम भरोसे पूरा देश। ये बात पक्की है कि अपनी पूरी जिंदगी में दादा कभी छत्तीसगढ़ नहीं आए, मगर उनकी पकड़ देखिए-शासन -प्रशासन को लेकर उन्होंने जमकर तंज़ कसा है। यहां के अधिकारी कर्मचारी खा भी रहे हंै और पी भी रहे हैं। उद्योगपति ऐश उड़ा रहे हैं। तो अधिकारी योजनाओं का मजाक उड़ाने में लगे हैं। आदिवासियों के बच्चों के कुपोषण के नाम पर अधिकारियों के रिश्तेदारों की गायों का पोषण हो रहा है। गरीबों के हिस्से की दलिया और तमाम रेडी टू ईट गऊ मैया आराम से खाती हैं। बदले में सबेरे साहब को पौष्टिक दूध देती हैं। तो गरीबों के बच्चों को जो इनसे बच जाता है उसको कभी- कभार बांट कर कागजी खानापूरी कर लिया करते हैं। सरकारी अधिकारी जो जांच में आते हैं उनकी भी थोड़ी सेवा हो जाया करती है। अब कुपोषण से मरने वाले बच्चे उनके अपने थोड़े ही हैं...मर जाएं उनकी बला से? हां कभी अपना बच्चा बीमार होता है तब समझ में आता है। गरीबों के बच्चों को राज्य में पोषण के नाम पर जो खिलाया जा रहा है वो किसी भी हालत में सही नहीं है। गरीबों के बच्चों को पिलाने के लिए सरकार ने सुगंधित मीठा दूध का कार्यक्रम शुरू करवाया। उसकी सफलता इस बात से समझी जा सकती है कि बस्तर में उसी दूध को पीकर एक आदिवासी बच्ची मर गई, जब कि तमाम इलाकों में कई दर्जन बच्चियां बीमार हुईं। खबरें जमकर छपीं तो महिला एवं बाल विकास मंत्री ने उसको बंद करवा दिया चुपके से। मजेदार बात तो ये कि उसकी फैक्टरी भी मंत्री के रिश्तेदार की थी। कुल मिलाकर सरकारी अधिकारी खाए ही जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी माना है कि केंद्र से चले एक रुपए में से गरीबों को महज सत्रह पैसे ही मिल पाते हैं। बाकी के 83 पैसे व्यवस्था खा जाती है। हम नमन करते हैं इस व्यवस्था की ऐसी अवस्था को। जब ये हाल है तो फिर यहां गरीबों के बच्चे क्यों न मरें? ऊपर से स्वच्छता का दावा किया जा रहा है। नोट बंद कर प्रधानमंत्री देश में परिवर्तन लाने की बात कर रहे हैं। तो विपक्ष ये कहकर अपना नर्तन जारी रखे है कि इससे कुछ भी नहीं होने वाला। असल में यदि इस बार प्रधानमंत्री चूक गए तो ये तो पक्का है कि देश का युवा वर्ग उनको अच्छी नज़र से नहीं देखेगा। जितनी भी योजनाएं सरकार बनाती है वो क्या असल आदमी तक पहुंच पाती हैं? इसी की समीक्षा कर ली जाए बात समझ में आ जाएगी। इसके लिए सिस्टम को जब तक कैशलेस नहीं बनाया जाएगा तब तक तो भ्रष्टाचार को रोकने की कल्पना भी बेमानी है। अब जब पूरा विपक्ष प्रधानमंत्री के सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर पिला पड़ा है। तब दुनिया के सबसे बड़े सर्जिकल स्ट्राइक के योध्दा हनुमान जी के लिए बाबा तुलसी दास द्वारा लिखित वो चौपाई याद आ रही है कि- सबके देह परम प्रिय स्वामी, मारहिं मोहिं कुमारगगामी। तो यहां वही हो रहा है। युवा पीढ़ी को पता है कि ये काम अच्छा है। इसलिए उसको युवा वर्ग तरजीह दे रहा है। अब जिस तरह से शिकंजा कसा जा रहा है। अगर ईमानदारी से उस पर अमल शुरू हुआ तो देश में एक परिवर्तन तो जरूर आएगा इसमें कोई दो राय नहीं है। तो समझ गए न सर....अब हम भी निकल लेते हैं अपने घर... तो कल फिर आपसे मुलाकात होगी, तब तक के लिए जै...जै।
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